दरक़ती
जा रही हैं नींव, अब पुख़्ता ठिकानों की
तभी
तो बढ़ गयी है माँग छोटे आशियानों की
जिन्हें
वो देखते कलतक, हिक़ारत की नज़र से थे
उन्हीं
के शीश पर छत, छा रहे हैं शामियानों की
बहुत
अभिमान था उनको, कबीलों की विरासत पर
हुई
हालत बहुत खस्ता, घमण्डी खानदानों की
सियासत
के समर में मिट गया, अभिमान दल-बल का
अखाड़े
में धुलाई हो गयी, जब पहलवानों की
लगा
झटका-बढ़ा खटका, खनककर आइना चटका
बग़ावत
कर रहीं अब पगड़ियाँ, दस्तारखानों की
जगा है
आम जब से, खास को होने लगी चिन्ता
अचानक
आ गयी है याद, मज़लूमों-किसानों की
सलाखों
का समाया डर, लगे अब काँपने थर-थर,
उज़ाग़र
ख़ामियाँ जब हो गयीं, इन बे-ईमानों की
विदेशी
बैंक में जाकर, छिपाया देश के धन को
खुलेगी
पोल-पट्टी अब, शरीफों के घरानों की
सियासी
गिरगिटों के “रूप” की, पहचान करने को
निकल
आयीं सड़क पर टोलियाँ, अब नौजवानों की
|
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शनिवार, 11 जनवरी 2014
"ग़ज़ल-खास को होने लगी चिन्ता" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंलिखा हुआ आपका इतना शानदार है कि इच्छा हो रही इसको अब गुनगुनाने की.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंशानदार,सुंदर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएंRECENT POST -: कुसुम-काय कामिनी दृगों में,
सुन्दर अभिव्यंजना। सुन्दर रूपक है यह रचना विडंबनाओं पर प्रहार है हमारे वक्त की।
जवाब देंहटाएं--
"ग़ज़ल-खास को होने लगी चिन्ता"
दरक़ती जा रही हैं नींव, अब पुख़्ता ठिकानों की
तभी तो बढ़ गयी है माँग छोटे आशियानों की
जिन्हें वो देखते कलतक, हिक़ारत की नज़र से थे
उन्हीं के शीश पर छत, छा रहे हैं शामियानों की...
उच्चारण
बहुत सटीक भाव लिए सुन्दर ग़ज़ल !
जवाब देंहटाएंमकर संक्रान्ति की शुभकामनाएं !
नई पोस्ट हम तुम.....,पानी का बूंद !
नई पोस्ट बोलती तस्वीरें !
जगा है आम जब से, खास को होने लगी चिन्ता
जवाब देंहटाएंअचानक आ गयी है याद, मज़लूमों-किसानों की ..
लाजवाब शेर है ... बहुत ही कमाल की गज़ल ... बधाई इस तंज पे ..
सियासत के समर में मिट गया, अभिमान दल-बल का
जवाब देंहटाएंअखाड़े में धुलाई हो गयी, जब पहलवानों की
वाह वाह शास्त्री जी आनंद आ गया।