अंग्रेजी से ओत-प्रोत,
अपने भारत का तन्त्र,
मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र।
बिगुल बजा कर आजादी का,
मौन हो गई भाषा,
देवनागरी के सपनों की,
गौण हो गई परिभाषा,
सब सुप्त हो गये छंद-शास्त्र,
अभिलुप्त हो गये मन्त्र।
मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र।।
|
कहाँ गया गौरव अतीत,
अमृत गागर क्यों गई रीत,
सूख गई उरबसी प्रीत,
खो गया कहाँ संगीत-गीत,
इस शान्त बाटिका में,
किसने बोया ऐसा षडयन्त्र।
मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र।।
|
कभी थे जो जग में वाचाल,
हुए क्यों गूँगे माँ के लाल,
विदेशों में जाकर सरदार,
हुए क्यों भाषा से कंगाल,
कर रहे माँ का दूध हराम,
यही है क्या अपना जनतन्त्र।
मनाएँ कैसे हम गणतन्त्र।।
|
सही बात
जवाब देंहटाएंअपने तन्त्र पुनर्जीवित करने होंगे।
जवाब देंहटाएंकल 30/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
वाह आदरणीय बहुत बढ़िया कथ्य
जवाब देंहटाएंसुन्दर ...
जवाब देंहटाएं