मौसम ने है बहुत रुलाया।
आसमान में बादल छाया।।
सूरज ने अवकाश लिया है,
सर्दी फिर से वापिस आयी।
पीछा नहीं छोड़ती अब भी,
कम्बल-लोई और रजायी।
ऊनी कपड़ें में भी अब तो,
काँप रही ठिठुरन से काया।
आसमान में बादल छाया।।
बिजली करती आँख-मिचौली,
हीटर पड़े हुए हैं ठण्डे।
बाजारों से लकड़ी गायब,
नहीं सुलभ हैं उपले-कण्डे।
चमक-चमककर, कड़क-कड़ककर,
घनचपला ने बहुत डराया।
आसमान में बादल छाया।।
अभी बहुत कुहरा आता है,
वासन्ती परिवेश नहीं है।
गर्मी नहीं अभी धूप में पूरी,
यौवन चढ़ा दिनेश नहीं है।
मजबूरी में दादा जी ने,
तसले में अलाव सुलगाया।
आसमान में बादल छाया।।
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शुक्रवार, 31 जनवरी 2014
"आसमान में बादल छाया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंसुन्दर चित्रण...
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना....
http://mauryareena.blogspot.in/
:-)
bahut badhiya ...sardi ka sundar warnan ...
हटाएंbahut badhiya .....
जवाब देंहटाएंबिजली करती आँख-मिचौली,
जवाब देंहटाएंहीटर पड़े हुए हैं ठण्डे।
बाजारों से लकड़ी गायब,
नहीं सुलभ हैं उपले-कण्डे।
चमक-चमककर, कड़क-कड़ककर,
घनचपला ने बहुत डराया।
आसमान में बादल छाया।।
सुन्दर बिम्ब सांगीतिक स्वर हैं रचना के।
कल 02/02/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
bahut sundar geet hai thand ka pura anand ....... :) pyara geet badhai aapko
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर हमेशा की तरह
जवाब देंहटाएंबहुत संदर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंNew post Arrival of Spring !
सियासत “आप” की !
ऐसे मौसम में आसमान खुला रहे, वही अच्छा।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...
जवाब देंहटाएं