आज मेरे देश को सुभाष चाहिए।
मीराबाई,सूर, तुलसीदास चाहिए।
आज मेरे देश को सुभाष चाहिए।।
मोटे मगर गंग-औ-जमन घूँट रहे हैं,
जल के जन्तुओं का अमन लूट रहे हैं,
गधों को मिठाई नही घास चाहिए।
आज मेरे देश को सुभाष चाहिए।।
चूहे और बिल्ली जैसा खेल हो रहा,
सर्प और छछूंदर जैसा मेल हो रहा,
जहरभरी हमको ना मिठास चाहिए।
आज मेरे देश को सुभाष चाहिए।।
कहीं है दिवाला और दिवाली कहीं है,
कहीं है खुशहाली और बेहाली कहीं है,
जनता को रोजी और लिबास चाहिए।
आज मेरे देश को सुभाष चाहिए।।
मँहगाई की मार लोग झेल रहे हैं,
कोठियों में नेता दण्ड पेल रहे हैं,
सिंहासन पर बैठी नही लाश चाहिए।
आज मेरे देश को सुभाष चाहिए।। |
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गुरुवार, 23 जनवरी 2014
"आज मेरे देश को सुभाष चाहिए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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Bahut khoob
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंआपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (24 .01.2014) को "बचपन" (चर्चा मंच-1502) पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है,धन्यबाद।
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंएक सुभाष काफी नहीं है...हर आदमी को सुभाष बनना पड़ेगा...मै हूँ अन्ना की तर्ज पर...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबात सुनाना तुमको आया,
गर्व जगाना तुमको आया,
राज मान कर बैठे नश्वर, अंग्रेजों को,
दीन हीन बन बैठे अपने, देश जनों को,
शक्ति बची किसमें है कितनी,
सत्य दिखाना तुमको आया।
(सुभाष चन्द्र बोस पर)
वाह !
जवाब देंहटाएंकल 25/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
wah...bahut khoob
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात भाई
जवाब देंहटाएंअच्छा लगा यहां आकर
सादर
सटीक रचना
जवाब देंहटाएं