सुहाने गीत गाने
की, हमें फुरसत नहीं मिलती।
नये पौधे लगाने की,
हमें फुरसत नहीं मिलती।।
बहारों में नहीं है
दम, फिजाओं में भरा है ग़म
नज़ारे हो गये हैं
नम, सितारों में भरा है तम
हसीं दुनिया बनाने
की, हमें फुरसत नहीं मिलती।
नहीं आभास रिश्तों
का, नहीं एहसास नातों का
हमें तो आदमी की
है, नहीं विश्वास बातों का
घरौदों को बसाने
की, हमें फुरसत नहीं मिलती।
लुभाती शहर की छोरी,
सिसकता प्यार भगिनी का
सुहाती अब नहीं
लोरी, मिटा उपकार जननी का
सरस उपहार पाने की,
हमें फुरसत नहीं मिलती।
नहीं गुणवान बनने
की, ललक धनवान बनने की
बुजुर्गों की
हिदायत को, जरूरत क्या समझने की
वतन में अमन लाने
की, हमें फुरसत नहीं मिलती।
भटककर जी रही
दुनिया, सिमटकर जी रही दुनिया
सभी को चाहिएँ बेटे,
सिसककर जी रही मुनिया
सभी रिश्ते निभाने
की, हमें फुरसत नहीं मिलती।
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सोमवार, 27 जनवरी 2014
"फुरसत नहीं मिलती" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंभटककर जी रही दुनिया, सिमटकर जी रही दुनिया
सभी को चाहिएँ बेटे, सिसककर जी रही मुनिया
सभी रिश्ते निभाने की, हमें फुरसत नहीं मिलती।
बहुत शानदार पंक्तियाँ |
प्रकृति के सौन्दर्य को निहारें, सँवारें
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना, बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति…!
जवाब देंहटाएंrachna bahut achchhi hai.
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