मुक्तक
गीत
सुख
का सूरज नहीं गगन में।
कुहरा
पसरा आज वतन में।।
पाला
पड़ता, शीत बरसता,
सर्दी
में है बदन ठिठुरता,
तन
ढकने को वस्त्र न पूरे,
निर्धनता
में जीवन मरता,
पौधे
मुरझाये गुलशन में।
कुहरा पसरा आज वतन में।।
आपाधापी
और वितण्डा,
बिना
गैस के चूल्हा ठण्डा,
गइया-जंगल
नजर न आते,
पायें
कहाँ से लकड़ी कण्डा,
लोकतन्त्र
की आजादी तो,
बन्धक
है अब राजभवन में।
कुहरा पसरा आज वतन में।।
जोड़-तोड़
षडयन्त्र यहाँ है?
गांधीजी
का मन्त्र कहाँ है?
जिसके
लिए शहादत दी थी.
वो जनता
का तन्त्र कहाँ है?
कब्ज़ा
है अब दानवता का,
मानवता
के इस कानन में।
कुहरा पसरा आज वतन में।।
विदुरनीति
का हुआ सफाया,
दुर्नीति
ने पाँव जमाया,
आदर्शों
को धता बताकर,
देश लूटकर
सबने खाया,
बरगद-पीपल
सूख गये हैं,
खर-पतवार
उगी उपवन में।
कुहरा पसरा आज वतन में।।
|
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मंगलवार, 7 जनवरी 2014
"विदुरनीति का हुआ सफाया" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति !
जवाब देंहटाएंनई पोस्ट सर्दी का मौसम!
नई पोस्ट लघु कथा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
जवाब देंहटाएं--
ati....sundar...awam_abhi_rachna..par...' satik '...chot
जवाब देंहटाएंराजनीति अपनी गरिमा से जितनी गिर सकती थी, गिरा दी गयी है।
जवाब देंहटाएंआज के हालात का सही चित्रण..
जवाब देंहटाएंkhoobsurat...
जवाब देंहटाएंguru jee aapka aashirvaad nahee mila is baar.... :-(
pls do come at my new post at
http://raaz-o-niyaaz.blogspot.com/2014/01/blog-post.html
वाह जी वाह
जवाब देंहटाएंजोड़-तोड़ षडयन्त्र यहाँ है?
हटाएंगांधीजी का मन्त्र कहाँ है?
जिसके लिए शहादत दी थी.
वो जनता का तन्त्र कहाँ है?
कब्ज़ा है अब दानवता का,
मानवता के इस कानन में।
कुहरा पसरा आज वतन में।।
बहुत सटीक व्यंग्य विडंबन हमारे वक्त की झरबेरियों की चुभन लिए है रचना।