मनमोहक सबको लगें, झालर-बन्दनवार।
जगमग करती रौशनी, सजे हुए बाजार।।
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मन सबका ललचा रहे, काजू औ’ बादाम।
लेकिन श्रमिक-किसान की, नहीं जेब में दाम।।
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धनवानों के है लिए, दीपों का त्यौहार।
जुआ खेलते शान से, जीत रहे या हार।।
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बाजारों में धान का, गिरा हुआ है भाव।
धरती के भगवान के, घर में बहुत अभाव।।
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जो दुनिया को पालता, बदतर उसका हाल।
औने-पौने दाम में, उसका बिकता माल।।
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चाहे अपने देश में, कोई हो सरदार।
नहीं किसानों का बना, अब तक पैरोकार।।
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जितने जनसेवक हुए, निकले सब मक्कार।
करते हैं मत के लिए, भाषण लच्छेदार।।
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उनकी है दीपावली, उनके सब त्योहार।
लेकिन जनता झेलती, महँगाई की मार।।
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गुरुवार, 1 नवंबर 2018
दोहे "घर में बहुत अभाव" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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जवाब देंहटाएंमनमोहक सबको लगें, झालर-बन्दनवार।
जगमग करती रौशनी, सजे हुए बाजार।।
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मन सबका ललचा रहे, काजू औ’ बादाम।
लेकिन श्रमिक-किसान की, नहीं जेब में दाम।।
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धनवानों के है लिए, दीपों का त्यौहार।
जुआ खेलते शान से, जीत रहे या हार।।
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बाजारों में धान का, गिरा हुआ है भाव।
धरती के भगवान के, घर में बहुत अभाव।।
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जो दुनिया को पालता, बदतर उसका हाल।
औने-पौने दाम में, उसका बिकता माल।।
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चाहे अपने देश में, कोई हो सरदार।
नहीं किसानों का बना, अब तक पैरोकार।।
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जितने जनसेवक हुए, निकले सब मक्कार।
करते हैं मत के लिए, भाषण लच्छेदार।।
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उनकी है दीपावली, उनके सब त्योहार।
लेकिन जनता झेलती, महँगाई की मार।।
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