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रविवार, 25 नवंबर 2018
ग़ज़ल " प्रारब्ध है सोया हुआ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

नीड़ में सबके यहाँ प्रारब्ध है सोया हुआ
उत्तर देंहटाएंकाटते वो ही फसल जो बीज था बोया हुआ
खोलकर गठरी न देखी, दूसरों की खोलताबढ़िया
गन्ध को है खोजता, मूरख हिरण खोया हुआ
कोयले की खान में, हीरा कहाँ से आयेगा
मैल है मन में भरा, केवल बदन धोया हुआ
अब तो माली ही वतन का खाद-पानी खा रहे
इस लिए आता नज़र सुरभित सुमन रोया हुआ
खोट ने पॉलिश लगाकर "रूप" कंचन का धरा
पुण्य ने बनकर श्रमिक अब, पाप को ढोया हुआ
बढ़िया भाव बोध की दार्शन संसिक्त ग़ज़ल प्रारब्ध को कर्म भोग फल को समझाती हुई ग़ज़ल हरेक शैर बहुत ख़ास
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