दीन-हीन थोथे वचन, कभी न बोलो मित्र।
वाणी से होता प्रकट, अच्छा-बुरा चरित्र।।
कटुक वचन के कोप से, हो जाते सब क्रुद्ध।
वाणी में रस हो अगर, टल जाते हैं युद्ध।।
जो विनम्र होकर पढ़ें, कहलाते वो छात्र।
जिनकी रसना रसभरी, होते वही सुपात्र।।
जो गुरु का आदर करें, वो हैं सच्चे शिष्य।
अभिमानी शागिर्द का, बनता नहीं भविष्य।।
जन्मजात होते नहीं, सन्त और बलवन्त।
बन जाते गुरु कृपा से, मूरख भी गुणवन्त।।
|
Linkbar
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |

गुरु दीप गुरुहि ज्योतिर गुरु अगास का सूर |
जवाब देंहटाएंअंतर गुरु प्रगास गहे होत अन्धेरा दूर || ५ ||
भावार्थ : - गुरु दीपक स्वरूप होते हैं गुरु ही उसकी ज्योत्स्ना होते हैं गुरु आकाश के सूर्य समदृश्य होते हैं | गुरु के ज्ञान प्रकाश ग्रहण कर अंतरतम अन्धकार से विमुक्त हो जाता है |