बाबा नागार्जुन के साथ
बागों की सैर
इसी वर्ष प्रकाशित मेरी पुस्तक
"स्मृति उपवन” से एक संस्मरण-
बाबा
नागार्जुन ने अपने यायावर स्वभाव को अन्त तक जी भरके जिया। इसका जीता जागता
प्रमाण मुझे बाबा के साथ बिताये गये कुछ दिनों में मिला।
बाबा को
आम खाने का बहुत शौक था और विशेषतया लँगड़ा बनारसी आम। इसलिए मैं बाबा के लिए
प्रतिदिन लंगड़ा आम बाजार से खरीद कर लाता था जिसे बाबा बहुत शौक से खाते थे। इस
पर मैं बाबा को कहता था कि बाबा लंगड़ा आम तो बहुत भारी होता है। फिर आप लंगड़ा आम
ही अधिक क्यों
बोले, ‘‘शास्त्री जी खाने को
तो किसी भी नस्ल का आम खाया जा सकता है मगर लँगड़े के अलावा दूसरी किस्म के आमों
में गुठली और छिलके के अतिरिक्त और कुछ होता ही नहीं है।’’
अब तो
मैं बाबा के तर्क के सामने निरुत्तर था। उन दिनों मेरी उमर लगभग 37-38 साल की थी
और मेरे पास पीले रंग का विजय सुपर स्कूटर हुआ करता था। इसलिए बाबा लगभग
प्रतिदिन घूमने की कोई न कोई माँग रख देते थे और मैं बाबा को अक्सर घुमाने ले
जाया करता था।
एक दिन
बाबा ने कहा कि आज किसी आम के बाग में चलते हैं शास्त्री जी!
मैंने कहा ठीक है बाबा। जब मैंने अपने मित्र प्रो-
वाचस्पति को यह बात बताई तो वह भी मेरे ही घर आ गये और बाबा के साथ हम दोनों
स्कूटर पर सवार होकर बनबसा तथा टनकपुर के आम के बागों में घूमने निकल पड़े।
संयोग से बाग की रखवाली एक बंगाली आदमी कर रहा था। अब
तो बाबा उससे बंगाली भाषा में खूब बतियाये।
बाबा ने प्रकृति का खूब आनन्द लिया और आम के
एक बगीचे में डाल के लंगड़ा बनारसी आम हम तीनों ने जम कर खाये।
शाम को बाबा ने कहा कि आज मैं खाना नहीं खाऊँगा। सिर्फ
एक गिलास गर्म दूध ही पियूँगा।
ऐसे थे
घुमक्ड़ स्वभाव के बाबा नागार्जुन। जो प्रकृति को जम कर जीते थे।
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शनिवार, 3 नवंबर 2018
संस्मरण "बाबा नागार्जुन के साथ बागों की सैर" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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रोचक संस्मरण
जवाब देंहटाएंअनुपम प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर संस्मरण
जवाब देंहटाएंरचनाकार के सहज व्यक्तित्व को प्रत्यक्ष करता संस्मरण !
जवाब देंहटाएंरोचक संस्मरण !
जवाब देंहटाएंबाबा नागार्जुन मिथिला के थे और मिथिलावासियों को आम बहुत पसंद होता है। मिथिला का आम, पान और माखन बहुत प्रसिद्ध है।
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