जीवन के कवि सम्मेलन में, गाना तो मजबूरी है।
आये हैं तो कुछ कह-सुनकर, जाना बहुत जरूरी है।।
जाने कितने स्वप्न संजोए,
जाने कितने रंग भरे।
ख्वाब अधूरे, हुए न पूरे,
ठाठ-बाट रह गये धरे।
सरदी-गरमी, धूप-छाँव को, पाना तो मजबूरी है।
आये हैं तो कुछ कह-सुनकर, जाना बहुत जरूरी है।।
जितना आगे कदम बढ़ाया,
मंजिल उतनी दूर हो गयीं।
समरसता की कल्पनाएँ सब,
थककर चकनाचूर हो गयीं।
घिसी-पिटी सी रीत निभाना, जन-जन की मजबूरी है।
आये हैं तो कुछ कह-सुनकर, जाना बहुत जरूरी है।।
बचपन बीता, गयी जवानी,
सूरज ढलने वाला है।
चिर यौवन को लिए हुए,
मन सबका ही मतवाला है।
दरवाजे की दस्तक को, पढ़ पाना बहुत जरूरी है।
आये हैं तो कुछ कह-सुनकर, जाना बहुत जरूरी है।।
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बुधवार, 11 सितंबर 2013
"दरवाजे की दस्तक" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अनमोल कृति
जवाब देंहटाएंजीवन के हर रंग को
बहुत ही बेहतरीन तरीक़े से बुन आपने सब्दों में सर
बधाई
सही कहा आपने ...
जवाब देंहटाएंवाह !
जवाब देंहटाएंजीवन का यही फलसफा है
पर यहाँ पहुँचने के बाद ही
कहने लगता है हर कोई
ये सब होता होगा
हमें कहाँ कुछ पता है !
बेहद सुन्दर रचना सर जी
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जवाब देंहटाएंHow to change blogger template
बेह्तरीन अभिव्यक्ति …!!गणेशोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें.
जवाब देंहटाएंकभी यहाँ भी पधारें।
सादर मदन
बहुत बढिया..सही कहा..
जवाब देंहटाएंसच कहा है, सुन्दर कृति
जवाब देंहटाएंदरवाजे की दस्तक को, पढ़ पाना बहुत जरूरी है।
जवाब देंहटाएंआये हैं तो कुछ कह-सुनकर, जाना बहुत जरूरी है....बहुत खूब.
आयें हैं तो कुछ कह सुन कर जाना बहुत जरूरी है। ब्लॉगर की तो यही कोशिश होती है सर।
जवाब देंहटाएं