हिन्दी व्यञ्जनावली-चवर्ग
"च"
"च" से चन्दा-चम्मच-चमचम!
चरखा सूत कातता हरदम!
सरदी, गरमी और वर्षा का,
बदल-बदल कर आता मौसम!!
--
"छ"
"छ" से छतरी सदा लगाओ!
छत पर मत तुम पतंग उड़ाओ!
छम-छम बारिश जब आती हो,
झट इसके नीचे छिप जाओ!!
--
"ज"
"ज" से जड़ और लिखो जहाज!
सागर पार करो तुम आज!
पानी पर सरपट चलता जो,
उस जहाज पर हमको नाज!!
--
"झ"
"झ" से झण्डा लगता प्यारा!
झण्डा ऊँचा रहे हमारा!
नही झुका है नही झुकेगा,
हम सबके नयनों का तारा!!
--
"ञ"
"ञ" को अगर बोलना हो तो!
नाक बन्द कर “ज” बोलो तो!
"ञ" की ध्वनि सुनाई देगी,
थोड़ा सा मुँह को खोलो तो!!
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सोमवार, 21 जुलाई 2014
"हिन्दी व्यञ्जनावली-चवर्ग" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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वाह :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंबच्चों के लिए तो दादाजी हो आप :)
जवाब देंहटाएंसुन्दर मनभावन बाल रचना लिखते हो, :) शुभकामनाएँ !!
वाह जबरदस्त
जवाब देंहटाएंहाहाहा ...बहुत सुन्दर..
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