लोग जब जुट जायेंगे, तो काफिला हो जायेगा
आम देगा तब मज़ा, जब पिलपिला हो जायेगा
पास में आकर कभी, कुछ वार्ता तो कीजिए
बात करने से रफू शिकवा-गिला हो जायेगा
आपसी पहचान से, रिश्ते नये बन जायेंगे
रोज़ मिलने का शुरू, जब सिलसिला हो जायेगा
नेह बाती को मिलेगा, जगमगायेगा दिया
जिस्म में जब आत्मा का, दाखिला हो जायेगा
“रूप” की बुनियाद पर तो, प्यार है टिकता नहीं
अच्छा-भला इन्सान इससे मुब्तिला हो जायेगा
(मुब्तिला=पीडित)
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शनिवार, 24 सितंबर 2016
ग़ज़ल "लोग जब जुट जायेंगे तो काफिला हो जायेगा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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vaahhhhhh bahut khooba gazal
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 25 सितम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 25 सितम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंसुन्दर गजल।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ...
जवाब देंहटाएंवाह...बहुत ख़ूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंलोग जब जुट जायेंगे, तो काफिला हो जायेगा
जवाब देंहटाएंआम देगा तब मज़ा, जब पिलपिला हो जायेगा
..बहुत सुन्दर। . सच है बून्द बून्द से घड़ा भी भर जाता है