उत्तर से दक्षिण को, भू पर।
बहती जल की धार निरन्तर।।
संसर्गों में जो भी आता,
तन-मन से पावन हो जाता,
अवगुण हो जाते छूमन्तर।
बहती जल की धार निरन्तर।।
सुनकर कलकल-छलछल के सुर,
आनन्दित हो जाता है उर,
निर्मल हो जाता है अन्तर।
बहती जल की धार निरन्तर।।
कुदरत का है साज अनोखा,
इसमें नही बनावट-धोखा,
चलता जाता चक्र निरन्तर।
बहती जल की धार निरन्तर।। |
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बुधवार, 7 सितंबर 2016
गीत "बहती जल की धार निरन्तर" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 08-09-2016 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2459 में दिया जाएगा
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
सुन्दर प्रवाहमयी कविता हेतु बधाइयाँ
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रवाहमयी कविता हेतु बधाइयाँ
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