हँसता-खिलता जैसा,
इन प्यारे सुमनों का मन है।
गुब्बारों सा नाजुक,
सारे बच्चों का जीवन है।।
नन्हें-मुन्नों के मन को,
मत ठेस कभी पहुँचाना।
नित्यप्रति कोमल पौधों पर,
स्नेह-सुधा
बरसाना ।।
ये कोरे कागज के जैसे,
होते भोले-भाले।
इन नटखट गुड्डे-गुड़ियों के,
होते खेल निराले।।
भरा हुआ चंचल अखियों में,
कितना अपनापन है।
झूम-झूम कर मस्ती में,
हँसता-गाता बचपन है।।
|
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गुरुवार, 1 सितंबर 2016
बालकविता "हँसता-गाता बचपन"
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बहुत सुन्दर बाल कविता ।
जवाब देंहटाएंसबसे प्यारा बचपन
जवाब देंहटाएंबचपन की याद दिलाती बहुत सुन्दर बाल रचना
बहुत सुन्दर शास्त्री जी .
जवाब देंहटाएं