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मंगलवार, 31 जनवरी 2017
वन्दना "माँ अमल-धवल कर दो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सोमवार, 30 जनवरी 2017
गीत "सबके मन को भाया बसन्त" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
आ गईं बहारें मधुवन में,
गुलशन में कलियाँ चहक उठीं,
पुष्पित बगिया भी महक उठी,
अनुरक्त हुआ मन का आँगन।
आया बसन्त, आया बसन्त।१।
चिड़ियों ने छाया नववितान,
यौवन ने ली है अँगड़ाई,
सूखी शाखा भी गदराई,
बौराये आम, नीम-जामुन।
आया बसन्त, आया बसन्त।२।
हिम हटा रहीं पर्वतमाला,
तम घटा रही रवि की ज्वाला,
गूँजे हर-हर, बम-बम के स्वर,
दस्तक देता होली का ज्वर,
सुखदायी बहने लगा पवन।
आया बसन्त, आया बसन्त।३।
भँवरे रस पीते हुए मिले,
मधुमक्खी शहद समेट रही,
सुन्दर तितली भर पेट रही,
निखरा-निखरा है नील गगन।
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रविवार, 29 जनवरी 2017
कवित्त और मुक्तक "नेता आया बिनबुलाया है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
भारत की महानता का, नही है अतीत याद,
वोट माँगने को, नेता आया बिनबुलाया है।
देश का कहाँ है ध्यान, होता नित्य सुरापान,
जाति, धर्म, प्रान्त जैसे, मुद्दों को भुनाया है।
युवराज-सन्त चल पड़े, गली-हाट में,
निर्वाचन के दौर ने, ये दिवस भी दिखाया है।।
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दुर्बल पौधों को ही ज्यादा, पानी-खाद मिला करती है।
चालू शेरों पर ही अक्सर, ज्यादा दाद मिला करती है।
सूखे पेड़ों पर बसन्त का, कोई असर नही होता है,
यौवन ढल जाने पर सबकी गर्दन बहुत हिला करती है।।
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तुम्हारी याद को लेकर, बड़ी ही दूर आये हैं।
लबों पर प्यास आयी तो, तुम्हारे जाम पाये हैं।
छिपाकर अपनी आँखों में तुम्हारा नूर लाये हैं,
लिखाकर दिल की कोटर में, तुम्हारा नाम लाये हैं।
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आँखें कभी छला करती हैं,
आँखे कभी खला करती हैं।
गैरों को अपना कर लेती,
जब ये आँख मिला करती हैं।।
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नेह का नीर पिलाकर देखो।
शोख कलियों को खिला कर देखो। वेवजहा हाथ मिलाने से कुछ नहीं होगा- दिल से दिल को तो मिलाकर देखो।।
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अब तो हर बात बहुत दूर गई।
दिल की सौगात बहुत दूर गई। रौशनी अब नज़र नहीं आती चाँदनी रात बहुत दूर गई।।
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जीवन में तम को हरने को, चिंगारी आ जाती है।
घर को आलोकित करने को, बहुत जरूरी बाती है।
होली की ज्वाला हो चाहे, तम से भरी अमावस हो-
हवनकुण्ड में ज्वाला बन, बाती कर्तव्य निभाती है।
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हम दधिचि के वंशज हैं, ऋषियों की हम सन्ताने हैं।
मातृभूमि की शम्मा पर, आहुति देते परवाने हैं।
दुनियावालों भूल न करना, कायर हमें समझने की-
उग्रवाद-आतंकवाद से, डरते नहीं दीवाने हैं।
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शनिवार, 28 जनवरी 2017
कविता "अब बसन्त आने वाला है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
सेमल के इस महावृक्ष का,
पतझड़ में गदराया तन है।
पत्ते सारे सिमट गये हैं,
शाखाओं पर लदे सुमन हैं।।
टेसू के पेड़ों पर भी तो,
लाल अँगारे दहक रहे हैं।
अद्भुत् छटा वनों में
फैली,
कुसुम डाल पर चहक रहे
हैं।।
देते हैं सन्देश हमें यह,
अब बसन्त आने वाला है।
धूप गुनगुनी बोल रही है,
अब जाड़ा जाने वाला है।।
बासन्ती परिधान पहनकर
सरसों पीली फूल रही है।
गेंहूँ के कोमल बिरुओं पर,
हरी बालियाँ झूल रहीं
हैं।।
प्रेमदिवस आने वाला है,
मस्त नज़ारों में खो
जाएँ।
मौसम आमन्त्रण देता है,
खुश होकर हम नाचें-गाएँ।।
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शुक्रवार, 27 जनवरी 2017
दोहे "सपनों का संसार" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
सपनों में आने लगे, राम और रहमान।
सपनों में अब जी रहे, मेहनतकश इंसान।।
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सच्ची होती है नहीं, सपनों की हर बात।
सपनों में ही देखिए, जन्नत की सौगात।।
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आवारा सपने हुए, हरजाई हैं मीत।
जीवन में कैसे बजे, अब मधुरिम संगीत।।
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सत्य हारता जा रहा, झूठ रहा है जीत।
कलयुग में भूले सभी, अपना आज अतीत।।
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हिंसा के परिवेश में, धर्म रहा दम तोड़।
बिना गणित के कर रहे, गुणा-भाग औ’ जोड़।।
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होता बड़ा हसीन है, सपनों का संसार।
लेकिन जीवन में नहीं, इनका कुछ आधार।।
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गुरुवार, 26 जनवरी 2017
दोहे "करना राह तलाश" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
धड़कन जब थम जाय तो, सब बन जाते गैर।।
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विधि के अटल विधान पर, चलता नहीं उपाय।
पंच तत्व की देह तो, माटी में मिल जाय।।
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कालचक्र को देखकर, होना मत भयभीत।
जो आया वो जायगा, जग की है यह रीत।।
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रहने काबिल जीव के, जब तक रहे शरीर।
तब तक जीवन-नाव की, खुली
रहे जंजीर।।
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किसकी कितनी उमर है, नहीं किसी को ज्ञान।
चित्रगुप्त के गणित से, सब ही हैं अनजान।।
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कहीं शोक की धुन बजे, कहीं मांगलिक गीत।
पड़ती सबको झेलनी, गरमी-बारिश-शीत।।
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जीवन के संग्राम में, होना नहीं निराश।
मंजिल पाने के लिए, करना राह तलाश।।
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"मेरी मझली बहन वीरमति अब स्मृतिशेष है"
मेरी मझली बहन वीरमति अब स्मृतिशेष है। --
25 जनवरी, 2017 का मनहूस दिवस था। कल मेरी मझली बहन को सुबह 6 बजे हृदय आघात हुआ। आनन-फानन में बरेली के दीपमाला अस्पताल में भर्ती कराया गया लेकिन वहाँ का डॉक्टर डाइग्नोसिस नहीं कर पाया और सर्दी के कारण इंफेक्सन का उपचार करता रहा। शाम को 5 बजे जब नीचे का रक्तचाप शून्य हो गया तो उसने बीस हजार रुपये लूटने के बाद जवाब दे दिया। तत्पश्चात बरेली के प्रख्यात अस्पताल गंगाशील में बहन को आई.सी.यू. में एडमिट करा दिया गया।
वहाँ के एम.डी और हृदय रोग सर्जन डॉ. निशान्त गुप्ता की टीम उपचार में जुट गयी। येन-केन प्रकारेण नीचे का 25 और ऊपर का बी.पी. 86 आ गया। हम लोग भी कल 25 तारीख को सुबह 10 बजे गंगाशील अस्पताल पहुँच गये। बहन की हालत स्थिर उस समय जैसी लगी। मैंने बहन से कहा कि मैं खटीमा से आ गया हूँ। उसने आँख खोली और उसकी आँखों में आँसू आ गये। डॉक्टरों की टीम ने कहा कि रोगी को सैंस पूरा है। तब तक वो लोग भी पचास हजार लूट चुके थे। उसके बाद हम लोग रुड़की बाले छोटे बहनोई चन्दशेखर को लेने के लिए बरेली जंक्शन चले गये। तभी बड़े भानजे कमलकान्त का फोन आया कि डॉक्टर मम्मी को डायलेसिस और वैंटिलेटर पर रखने के लिए कह रहे हैं। मैंने डॉक्टर से बात की तो उसने कहा कि हालत में सुधार है। वेंटीलेटर और डायलिसिस ठीक हो जायेंगी। हम लोग जब अस्पताल पहुँचे तो बहन की साँस चल रही थी। हम लोगों ने डॉ. निशान्त गुप्ता से मुलाकात की तो उन्होंने सकारात्मक उत्र दिया और कहा कि कल से सुधार है। मैंने भानजे को 40,000 रुपये दिये और खटीमा के लिए प्रस्थान किया। घर पहुँचा ही था कि फोन आया कि मम्मी जी अब नहीं रहीं। सच पूछा जाये तो बहन के प्राण-पखेरू दिन में 1 जे ही उड़ गये थे और डॉक्टरों ने अपनी नाकामी छिपाने के लिए उसके मृत शरीर को वेंटिलेटर पर रखा था और हमें दिलासा दिलाने के लिए कृत्रिम साँस दिला रहे थे। ताकि जाते-जाते और पैसा लूट सकें। यह है हमारे देश के डाक्टरों की मानसिकता। जो डाक्टरों के चोले में सिर्फ और सिर्फ कसाई हैं। |
मंगलवार, 24 जनवरी 2017
गीत "गणतंत्र महान" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
नया वर्ष स्वागत करता है ,
पहन नया परिधान।
सारे जग से न्यारा अपना,
है गणतंत्र महान ॥
ज्ञान गंग की बहती धारा , चन्दा , सूरज से उजियारा। आन -बान और शान हमारी, संविधान हम सबको प्यारा । प्रजातंत्र पर भारत वाले,
करते हैं अभिमान ।
सारे जग से न्यारा अपना,
है गणतंत्र महान॥
शीश मुकुट हिमवान अचल है , सुंदर -सुंदर ताजमहल है। गंगा - यमुना और सरयू का, पग पखारता पावन जल है । प्राणों से भी मूल्यवान है,
हमको हिन्दुस्तान ।
सारे जग से न्यारा अपना,
है गणतंत्र महान॥
स्वर भर कर इतिहास सुनाता , महापुरुषों से इसका नाता। गौतम, गांधी, दयानंद की, प्यारी धरती भारतमाता । यहाँ हुए हैं पैदा नानक,
राम, कृष्ण,भगवान।
सारे जग से न्यारा अपना,
है गणतंत्र महान॥
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सोमवार, 23 जनवरी 2017
दोहे "होने लगे बबाल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
होती है मधुमास की, कदम-कदम पर हार।।
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पीले पत्ते देखकर, तरुवर हुए उदास।
आयेगा कैसे भला, जीवन में मधुमास।।
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नकली जब मुसकान हो, नकली हों उपहार।
पायें हम कैसे यहाँ, फिर असली शृंगार।।
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बदले जीवन ढंग अब, बदले सभी रिवाज।
ओढ़ सभ्यता पश्चिमी, दूषित हुआ समाज।।
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घर-घर अलख जगा रहे, राजनीति के दूत।
मत पाने का शीश पर, चढ़ा हुआ है भूत।।
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करवाते बेखौफ हो, नेता यहाँ फसाद।
जन-गण में छाया हुआ, अब केवल अवसाद।।
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आवारा मौसम हुए, हुआ बसन्त उदास।
खेतों में कैसे खिलें, सरसों और पलास।।
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सकते में हैं लोग सब, कैसे सुधरें हाल।
वसुन्धरा पर आज तो, होने लगे बबाल।।
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रविवार, 22 जनवरी 2017
गीत "रबड़-छन्द भाया है" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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