गाँव-गली, नुक्कड़-चौराहे,
सब के सब बदनाम हो गये।
कामी-कपटी और मवाली,
रावण सारे राम हो गये।।
रामराज का सपना टूटा,
बिखर गया हर पत्ता-बूटा।
जिसको मौका मिला उसी ने,
खेत-बाग-वन जमकर लूटा।
हत्या और बलात् कर्म अब,
जन-जीवन में आम हो गये।।
कामी-कपटी और मवाली,
रावण सारे राम हो गये।।
असरदार सरदार मिले हैं,
लुटे-पिटे घर-बार मिले हैं।
भोली-भाली जनता को बस,
भाषण लच्छेदार मिले हैं।
लोकतन्त्र के मन्दिर में अब,
राजतन्त्र के काम हो गये।
कामी-कपटी और मवाली,
रावण सारे राम हो गये।।
जनसेवक मनमानी करते,
केवल अपनी झोली भरते।
कूटनीति दम तोड़ रही है,
सीमाओं पर सैनिक मरते।
सोनचिरैया के सब गहने,
पलपभर में नीलाम हो गये।
कामी-कपटी और मवाली,
रावण सारे राम हो गये।।
गंगा रोती, गइया रोती,
पण्डित जी की पूजा रोती,
देख सपूतों की करतूतें,
घर में बैठी मइया रोती।
“रूप” देखकर चरवाहों का,
कंस आज घनश्याम हो गये।
कामी-कपटी और मवाली,
रावण सारे राम हो गये।।
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सोमवार, 2 जनवरी 2017
"जय-विजय, जन.2017 में मेरा गीत" रावण सारे राम हो गये (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक)
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सुन्दर ।
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब। नव वर्ष की शुभकामनाएं।
जवाब देंहटाएंबहुत सही..हार्दिक बधाई
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