ढंग निराले होते जग में, मिले जुले परिवार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
चमन एक हो किन्तु वहाँ पर, रंग-विरंगे फूल खिलें,
मधु से मिश्रित वाणी बोलें, इक दूजे से लोग मिलें,
ग्रीष्म-शीत-बरसात सुनाये, नगमें सुखद बहार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
पंचम सुर में गाये कोयल, कलिका खुश होकर चहके,
नाती-पोतों की खुशबू से, घर की फुलवारी महके,
माटी के कण-कण में गूँजें, अभिनव राग सितार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
नग से भू तक, कलकल करती, सरिताएँ बहती जायें,
शस्यश्यामला अपनी धरती, अन्न हमेशा उपजायें,
मिल-जुलकर सब पर्व मनायें, थाल सजें उपहार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
गुरूकुल हों विद्या के आलय, बिके न ज्ञान दुकानों में,
नहीं कैद हों बदन हमारे, भड़कीले परिधानों में,
चाटुकार-मक्कार बनें ना, जनसेवक सरकार के।
देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।।
बरसें बादल-हरियाली हो, बुझे धरा की प्यास यहाँ, चरागाह में गैया-भैंसें, चरें पेटभर घास जहाँ, झूम-झूमकर सावन लाये, झोंके मस्त बयार के। देते हैं आनन्द अनोखा, रिश्ते-नाते प्यार के।। |
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मंगलवार, 10 जनवरी 2017
गीत "ढंग निराले होते जग में मिले जुले परिवार के" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर गीत।
जवाब देंहटाएंइतना खुलापन देख कर मन प्रसन्न हो गया .
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