होती है मधुमास की, कदम-कदम पर हार।।
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पीले पत्ते देखकर, तरुवर हुए उदास।
आयेगा कैसे भला, जीवन में मधुमास।।
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नकली जब मुसकान हो, नकली हों उपहार।
पायें हम कैसे यहाँ, फिर असली शृंगार।।
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बदले जीवन ढंग अब, बदले सभी रिवाज।
ओढ़ सभ्यता पश्चिमी, दूषित हुआ समाज।।
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घर-घर अलख जगा रहे, राजनीति के दूत।
मत पाने का शीश पर, चढ़ा हुआ है भूत।।
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करवाते बेखौफ हो, नेता यहाँ फसाद।
जन-गण में छाया हुआ, अब केवल अवसाद।।
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आवारा मौसम हुए, हुआ बसन्त उदास।
खेतों में कैसे खिलें, सरसों और पलास।।
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सकते में हैं लोग सब, कैसे सुधरें हाल।
वसुन्धरा पर आज तो, होने लगे बबाल।।
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सोमवार, 23 जनवरी 2017
दोहे "होने लगे बबाल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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वाह!! सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे ।
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