आज का है पता और न कल का पता। पाप और पुण्य के भी न फल का पता।। हमने दुर्गम डगर पर बढ़ाये कदम, हँसते-हँसते मिले, हर मुसीबत से हम, हमको इन्सानियत के न छल का पता। पाप और पुण्य के भी न फल का पता।। हमने तूफान में रख दिया है दिया, आँसुओं को सुधा सा समझकर पिया, भव के सागर के कोई न तल का पता। पाप और पुण्य के भी न फल का पता।। हम तो जिससे मिले, खोलकर दिल मिले, किन्तु वो जब मिले, फासलों से मिले, इस कदर बढ़ गई, व्यक्ति की व्यस्तता। पाप और पुण्य के भी न फल का पता।। |
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सोमवार, 17 अगस्त 2009
‘‘इस कदर बढ़ गई, व्यक्ति की व्यस्तता’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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अद्भुत रचना! जीवन की सच्चाई को आपने शब्दों में बड़े बखूबी से पिरोया है! आखरी की चार पंक्तियाँ बेहद पसंद आया! बिल्कुल सही बात कहा है आपने! लाजवाब !
जवाब देंहटाएंसुन्दर,
जवाब देंहटाएंसब गोलमाल ही लगता है इस कलयुग में !
ati uttam guru ji...
जवाब देंहटाएंna aaj ka pata na kal ka pata...
bahut he sundar rachna hai...
बिल्कुल सही बात कहा है आपने! लाजवाब !सुन्दर
जवाब देंहटाएंजीवन के saty को aasaani से लिख दिया है आपने............... lajawaab rachn है shaashtri जी आपकी..
जवाब देंहटाएंगलती पर गलती करना ही आदत है हैवानों की...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब डाक्टरसाब...नित्य ही छंदबद्ध रचना करना आपका जबर्दस्त अनुशासन है। आज के दौर में इन छंदों और इनमें निहित निति-सूत्रों को को पढ़ कर रोज ही खुद को धन्य मानता हूं।
वाह !
जवाब देंहटाएं:)
ABHINAV RACHNAA...........
जवाब देंहटाएंJAI HIND !
"हम तो जिससे मिले, खोलकर दिल मिले,
जवाब देंहटाएंकिन्तु वो जब मिले, फासलों से मिले,
इस कदर बढ़ गई, व्यक्ति की व्यस्तता।
पाप और पुण्य के भी न फल का पता।।"
बिल्कुल सही कहा है आपने!
अद्भुत रचना!
बहुत ही लाजवाब छंद हैं जी.
जवाब देंहटाएंरामराम.
इन्सानियत के न छल का पता।
जवाब देंहटाएंहम तो जिससे मिले, खोलकर दिल मिले,
किन्तु वो जब मिले, फासलों से मिले,
bahut sundar panktiyaan
हमने दुर्गम डगर पर बढ़ाये कदम,
जवाब देंहटाएंहँसते-हँसते मिले, हर मुसीबत से हम,
हमको इन्सानियत के न छल का पता।
पाप और पुण्य के भी न फल का पता।।
लाजवाब रचना!!!!
jeevan ke satya ko ujagar karti rachna.........halat bahut bigad gaye hain aur unhein aapne bakhubi prastut kiya hai........bigadte halat ka dard sahi ubhar kar aaya hai.........aur aakhiri ki char lines mein to satya se hi samna hota hai.
जवाब देंहटाएंबेहद भावपूर्ण रचना.........और क्या कहे
जवाब देंहटाएंआज का है पता और न कल का पता।
जवाब देंहटाएंपाप और पुण्य के भी न फल का पता।।
just toooooo Goood.... badhai..!
सुन्दर रचना...लाजवाब
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी गजब की कविता
जवाब देंहटाएंव्यस्तता को बहुत रोचक अंदाज में परोसा है आपने.. हैपी ब्लॉगिंग
जवाब देंहटाएंवाह...शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंकमाल की गज़ल लिखी है।
मुबारकवाद!
आज का है पता और न कल का पता।
जवाब देंहटाएंपाप और पुण्य के भी न फल का पता।।
मयंक जी।
विषय के चयन में आपका जवाब नही।
बधाई।
"हम तो जिससे मिले, खोलकर दिल मिले,
जवाब देंहटाएंकिन्तु वो जब मिले, फासलों से मिले,
इस कदर बढ़ गई, व्यक्ति की व्यस्तता।
पाप और पुण्य के भी न फल का पता।।"
बहुत बढ़िया लिखा है आपने।
MAYANK JI!
जवाब देंहटाएंIS SUNDER PRASUTI KE LIYE
MERE PAS EK HI SHABD HAI.
WAHHHHHHHHHH.......
हम तो जिससे मिले, खोलकर दिल मिले,
जवाब देंहटाएंकिन्तु वो जब मिले, फासलों से मिले,
सुन्दर लाजवाब...