जिन्दा हो गर, तो जिन्दादिली का प्रमाण दो। मुर्दों की तरह, बुज-दिली के मत निशान दो।। स्वाधीनता का पाठ पढ़ाया है राम ने, क्यों गिड़िगिड़ा रहे हो शत्रुओं के सामने, अपमान करने वालों को हरगिज न मान दो। मुर्दों की तरह, बुज-दिली के मत निशान दो।। तन्द्रा में क्यों पड़े हो, हिन्द के निवासियों, सहने का वक्त अब नही, भारत के वासियों, सौदागरों की बात पर बिल्कुल न ध्यान दो। मुर्दों की तरह, बुज-दिली के मत निशान दो।। कश्मीर का भू-भाग दुश्मनों से छीन लो, कैलाश-मानसर को भी अपने अधीन लो, चीन-पाक को नही रज-कण का दान दो। मुर्दों की तरह, बुज-दिली के मत निशान दो।। |
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शनिवार, 29 अगस्त 2009
’’बुज-दिली के मत निशान दो’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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वाह ! क्या कहूं ? चंद अल्फाजो में ही आपने ढेर सारी बाते कह दी, शास्त्री जी ! बधाई !!काश, ये बुजदिल आपकी कविता पढ़ पाते !!!!
जवाब देंहटाएंDeshprem se bhari acchi rachna ...
जवाब देंहटाएंwaah waah ..........aaj to veer ras chhalak chhalak ja raha hai..........ati sundar.
जवाब देंहटाएंकमाल का गीत है!
जवाब देंहटाएं---
तख़लीक़-ए-नज़र
बहुत सुंदर ढंग से आप ने देश के नोजवानो , ओर देश वासियो को एक संदेश दिया, काश इस देश को गर्त मै लेजाने वाले नेता आप की यह कविता पढ कर अकल से काम लेते...
जवाब देंहटाएंSahi kahaa, buzdilee maut se bhi badtar hoti hai.
जवाब देंहटाएं( Treasurer-S. T. )
ज़ोरदार ललकार है शास्त्रीजी! कैफी आज़मी की एक पंक्ति याद आती है :
जवाब देंहटाएं'कोई तो सूद चुकाए, कोई तो जिम्मा ले,
उस इंक़लाब का, जो आज तक उधार-सा है !"
बधाई !!
मुर्दों की तरह, बुज-दिली के मत निशान दो।।
जवाब देंहटाएंbahut sahi kaha hai aapne.........
बहुत सटीक कहा आपने.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत तेजस्वी रचना. शायद आज हमें ऐसी ही रचनाओं की ज़रुरत है.
जवाब देंहटाएंबड़ी ही सामयिक रचना है
जवाब देंहटाएंवाह वाह ! बहुत ही सुंदर देशप्रेम से भरी रचना!
जवाब देंहटाएंकश्मीर का भू-भाग दुश्मनों से छीन लो,
जवाब देंहटाएंकैलाश-मानसर को भी अपने अधीन लो,
DIL MEIN JOSH BHARTI ...... BAJUON KO FADKAATI LAJAWAAB RACHNA .......