हमने बनाए जिन्दगी में कुछ उसूल हैं। गर प्यार से मिले तो जहर भी कुबूल है।। हमने तो पड़ोसी को अभय-दान दिया है, दुश्मन को दोस्त जैसा सदा मान दिया है, बस हमसे बार-बार हुई ये ही भूल है। गर प्यार से मिले तो जहर भी कुबूल है।। साबुन से धोया हमने गधों को हजार बार, लेकिन कभी न आया उनमें गाय सा निखार, क्यों पथ में बार-बार बिछाते वो शूल हैं। गर प्यार से मिले तो जहर भी कुबूल है।। हम जोर-जुल्म के कभी आगे न झुकेंगे, जल-जलों तूफान से डर कर न रुकेंगे, खारों को हमने मान लिया सिर्फ फूल है। गर प्यार से मिले तो जहर भी कुबूल है।। |
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सोमवार, 31 अगस्त 2009
‘‘खारों को हमने मान लिया सिर्फ फूल है’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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साबुन से धोया हमने गधों को हजार बार,
जवाब देंहटाएंलेकिन कभी न आया उनमें गाय सा निखार,
क्यों पथ में बार-बार बिछाते वो शूल हैं।
गर प्यार से मिले तो जहर भी कुबूल है।।
सुंदर रचना..बधाई!!!
हमने तो पड़ोसी को अभय-दान दिया है,
जवाब देंहटाएंदुश्मन को दोस्त जैसा सदा मान दिया है,
बस हमसे बार-बार हुई ये ही भूल है।
सुंदर !!
बहुत ख़ूब! गाय का बछड़ा तो बड़ा प्यारा है!
जवाब देंहटाएं--->
गुलाबी कोंपलें · चाँद, बादल और शाम
"हमने तो पड़ोसी को अभय-दान दिया है,
जवाब देंहटाएंदुश्मन को दोस्त जैसा सदा मान दिया है,
बस हमसे बार-बार हुई ये ही भूल है।"
सुंदर रचना..बधाई!!!
बहुत ही उम्दा विचार
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा काव्य.........
वाह !
साबुन से धोया हमने गधों को हजार बार,
जवाब देंहटाएंलेकिन कभी न आया उनमें गाय सा निखार,
क्यों पथ में बार-बार बिछाते वो शूल हैं।
गर प्यार से मिले तो जहर भी कुबूल है।।
khoobsoorat rachna.
HAB JAHAR KABULENGE TO MATLA YAHI H KI
जवाब देंहटाएंHUMZOR-JULAM BHI KABULENGE.
HUMKO NAHI PYAR KI ZAHAR KABUL,
JISKO LAGI H BHOOKH WO CHAKHE JARUR.
BHARAT AAJ JO HAAL H WO YAHI RAHA USUUL,
AAGE AB AUR NAHI HUM SAHENGE YEH ZAHRILI BANDUK.
भावनाओ को आपने इस रचना मे उढेल दिया है आपने ........जिसमे हम भी डुब गये!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
गर प्यार से मिले तो जहर भी कुबूल है।।
जवाब देंहटाएंप्यार से मिलने वाला तो मिले ---
बहुत खूब
khoobsoorat rachana. congratulation.
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना है, बहुत सारे सच एक साथ कहती है।
जवाब देंहटाएंबहुत खुब लाजवाब रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना...josheeli
जवाब देंहटाएंबहुत खूब, सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंwah.
जवाब देंहटाएंसाबुन से धोया हमने गधों को हजार बार,
लेकिन कभी न आया उनमें गाय सा निखार,
क्यों पथ में बार-बार बिछाते वो शूल हैं।
गर प्यार से मिले तो जहर भी कुबूल है।।
uttam rachna ke liye badhai
आपकी हर एक रचनाएँ भावनाओं से भरी होती है खासकर इस रचना में तो आपने हर एक शब्द को भावनाओं से पिरोया है! बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंहमने तो पड़ोसी को अभय-दान दिया है,
जवाब देंहटाएंदुश्मन को दोस्त जैसा सदा मान दिया है,
बस हमसे बार-बार हुई ये ही भूल है।
गर प्यार से मिले तो जहर भी कुबूल है।।
bahut hi sundar bhav .badhai!!
वाह !! क्या खूब कही ....
जवाब देंहटाएंहमने तो पड़ोसी को अभय-दान दिया है,
दुश्मन को दोस्त जैसा सदा मान दिया है,
बस हमसे बार-बार हुई ये ही भूल है।
गर प्यार से मिले तो जहर भी कुबूल है।।
हमने तो पड़ोसी को अभय-दान दिया है,
जवाब देंहटाएंदुश्मन को दोस्त जैसा सदा मान दिया है
DUSHMAN KO AB CHETNA CHAAHIYE ... HAMAARE SABR KA IMTEHAAN NAHI LENA CHAAHIYE ....... OZ POORN RACHNA HAI ......
साबुन से धोया हमने गधों को हजार बार,
जवाब देंहटाएंलेकिन कभी न आया उनमें गाय सा निखार,
क्यों पथ में बार-बार बिछाते वो शूल हैं।
गर प्यार से मिले तो जहर भी कुबूल है।।
is sundar rachna ke liye aapkee taarif ke liye shabd nahin.
--KYA AAP ZINDA HAIN?