वक्त सही हो तो सारा, संसार सुहाना लगता है। बुरे वक्त में अपना साया भी, बेगाना लगता है।। यदि अपने घर व्यंजन हैं, तो बाहर घी की थाली है, भिक्षा भी मिलनी मुश्किल, यदि अपनी झोली खाली है, गूढ़ वचन भी निर्धन का, जग को बचकाना लगता है। बुरे वक्त में अपना साया भी, बेगाना लगता है।। फूटी किस्मत हो तो, गम की भीड़ नजर आती है, कालीनों को बोरों की, कब पीड़ नजर आती है, कलियों को खिलते फूलों का रूप पुराना लगता है। बुरे वक्त में अपना साया भी, बेगाना लगता है।। धूप-छाँव जैसा, अच्छा और बुरा हाल आता है, बारह मास गुजर जाने पर, नया साल आता है, खुशियाँ पा जाने पर ही अच्छा मुस्काना लगता है। बुरे वक्त में अपना साया भी, बेगाना लगता है।। |
---|
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
रविवार, 23 अगस्त 2009
‘‘बुरे वक्त में अपना साया भी, बेगाना लगता है’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि &qu...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
क्या बात है,। बहुत सुन्दर रचना, लाजवाब..............
जवाब देंहटाएंबहुत अनुपम गीत हैजी.........
जवाब देंहटाएंबाँच कर आनन्द आया..........
प्रणाम !
जय गणेश !
डाक्टर साहब जीवन का यह कटु सत्य है गीत के माध्यम से आपने जिसे अभिव्यक्त किया है । लेकिन यह गीत या कविता या आशा का संचार करने वाला साहित्य ही है जो बुरे वक्त में भी अच्छा लगता है ।
जवाब देंहटाएंअच्छी और सच्ची रचना।
जवाब देंहटाएंजीवन की सच्चाई को आपने बड़े ही सुंदर रूप से व्यक्त किया है! बहुत खूब!
जवाब देंहटाएंशायद ये रचना मैने पहले भी पढी है सुन्दर अभिव्यक्ति है बधाई
जवाब देंहटाएंनिर्मला बहिन जी!
जवाब देंहटाएंमैं तो नित नई रचना लिखता हूँ।
आपने ये कहाँ से पढ़ ली होगी।
बहुत सुंदर रचना !!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना. शुभकामनाएं.
जवाब देंहटाएंरामराम.
डॉ. शास्त्री साहब,
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छा गीत है, इस गीत में एक बंद मुझे किसी दर्शन शास्त्र के सिद्धाँत सा लगा :-
कालीनों को बोरों की, कब पीड़ नजर आती है,
कलियों को खिलते फूलों का रूप पुराना लगता है।
नमन!!!
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
बहुत सुंदर रचना ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना.अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंधूप-छाँव जैसा, अच्छा और बुरा हाल आता है,
जवाब देंहटाएंबारह मास गुजर जाने पर, नया साल आता है,
बहुत सुन्दर. जीवन के गहरे भाव.
bahut hi khoobsoorat rachna hai......laybaddh,lajawaab.
जवाब देंहटाएं