मैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।। नीचे से लेकर ऊपर तक, भ्रष्ट-आवरण चढ़ा हुआ, झूठे, बे-ईमानों से है, सत्य-आचरण डरा हुआ, दाल और चीनी भरे पड़े हैं, तहखानों आगारों में। मैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।। नेताओं की चीनी मिल हैं, नेता ही व्यापारी हैं, खेतीहर-मजदूरों का, लुटना उनकी लाचारी हैं, डाकू, चोर, लुटेरे बैठे, संसद और सरकारों में। मैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।। आजादी पूँजीपतियों को, आजादी सामन्तवाद को, आजादी ऊँची-खटियों को, आजादी आतंकवाद को, निर्धन नारों में बिकता है, गली और बाजारों में। मैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।। (चित्र गूगल सर्च से साभार) |
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सोमवार, 10 अगस्त 2009
‘‘बन्दी है आजादी अपनी, छल के कारागारों में’’ (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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आज़ादी को इतने साल हुए .. पर कहा है आज़ादी ? हर जगह भ्रष्टाचार , चोरी और लाचारी ...
जवाब देंहटाएंसही चित्रण किया है आपने आजाद हिंद का ...!
darpan dikha diya mayankji aapne ..........
जवाब देंहटाएंkhoob
bahut khoob !
abhinandan aapka !
हर शाख पे उल्लू बैठा है ,
जवाब देंहटाएंतो अंजाम-ऐ-गुलिस्तान क्या कहिये ??
जब हर गली में नेता रहेता है ,
तो अंजाम-ऐ-हिंदुस्तान क्या कहिये ??
हुकुमरानों की भीड़ में,जो नहीं कोई रहेनुमा ,
तो अंजाम-ऐ-नौजवान क्या कहिये ??
बहुत अच्छी लगी आपकी ये रचना! तस्वीर बहुत सुंदर है और सच्चाई का प्रतीक है! हमारे देश को साठ साल से भी ज़्यादा हो गए आज़ादी मिली फिर भी चोरी, लूटमार, भ्रष्टाचार इत्यादि फैला हुआ है!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
आजादी पूँजीपतियों को, आजादी सामन्तवाद को,
जवाब देंहटाएंआजादी ऊँची-खटियों को, आजादी आतंकवाद को,
निर्धन नारों में बिकता है,गली और बाजारों में।
मैला-पंक समाया है, निर्मल नदियों की धारों में।।
sampoorn rachna sarahneey hai. ojpoorn rachna ke liye dil se badhai!
बिल्कुल ठीक कह रहे हैं. पूरी तरह सहमत.
जवाब देंहटाएंमंयक जी किसी एक लाईन के लिये कहू तो पूरी्रचना के साथ अन्याय होगा बहुत ही सटीक अभिव्यक्ति है आज कल जो आजादी की दुरगति हो रही है उनका सही चित्रन किया है आभार्
जवाब देंहटाएंदिन बा दिन बढ रही है , भूख बेचारी, लाचार, भिखारी , बलात्कारी, व्यभिचारी , क्या कहिये?
जवाब देंहटाएंdesh ke aaj ke halat ka aapne bahut hi satik chitran kiya hai...........aaj bhi hum bhrashtachar,beimaani,jhooth fareb ke gulaam hain ......phir aazadi hai kahan aur kiske liye hai........shayad netaon ke liye hi aazadi hai baki aam janta ka to wo hi haal hai.
जवाब देंहटाएंनेताओं की चीनी मिल हैं,नेता ही व्यापारी
जवाब देंहटाएंखेतीहर-मजदूरों का, लुटना उनकी लाचारी हैं
SACH MEIN ASLI AAJAADI TAB HOGI JAB IN BHRASHT NETAAON SE CHUTTI MILEGI.... YE NETAA BHI ANGREZON SE KAM NAHI HAIN.....LAJAWAAB POST HAI AAPKI
कटु सत्य को उजागर करती रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंGALI GALI KOHARAM MACHA HAIN .SANS SANS PER PEHRA HAIN. PHIR BHI HUM KEHATE NAHI THAKATE KITENA DAUR SUNEHARA HAIN.
जवाब देंहटाएंमयंक जी।
जवाब देंहटाएंइस हकीकत से भरे गीत के लिए,
शुभकामनाएँ।
मयंक जी।
जवाब देंहटाएंइस बढ़िया गीत के लिए,
शुभकामनाएँ।
sunder kataksh, sunder rachna.
जवाब देंहटाएं