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मंगलवार, 6 नवंबर 2012
"पन्द्रह दोहे" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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एकल कविता पाठ कर के लगता है कि स्वयं से बतिया रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे ....
जवाब देंहटाएंआपकी उम्दा पोस्ट बुधवार (07-11-12) को चर्चा मंच पर | जरूर पधारें |
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ |
वाह बहुत मजेदार दोहे..आभार..
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर दोहे
जवाब देंहटाएंवाह...
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया दोहे...
सादर
अनु
बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसभी दोहे एक से बढकर एक
एकल कवितापाठ का, अपना ही आनन्द।
जवाब देंहटाएंरोज़ करो ये गोष्ठी, करके कमरा बन्द।१।
सभी दोहे शानदार पर इसका आनंद तो सबसे बढ़कर है .सुन्दर प्रस्तुति
बहुत बढ़िया दोहे ....सादर जय जोहार
जवाब देंहटाएंदेश खोखला कर दिया, जीना किया हराम।
जवाब देंहटाएंफर्रूखाबादी हुए, फोकट में बदनाम।९।
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फिर से पैदा हो गये, बाबर-औरंगजेब।
इनमें उनकी ही तरह, भरे हुए हैं ऐब।१०।
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वाणी में ही निहित हैं, सभी तरह के शब्द।
कुछ देते हैं सुख यहाँ, कुछ कर देते दग्ध।११।
बहुत सुंदर दोहे ।
bahut hee badhiyaa dohe
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया
जवाब देंहटाएंवाह .. .बेहतरीन
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंचंद्र रूप पर्याय है,ज्यों शीतलतायुक्त मयंक।
जवाब देंहटाएंकोमल सा स्नेह पगा,ज्यों कोई मारेहु डंक।।