काटते उसकी फसल जो बीज था बोया हुआ
खोलकर अपनी न देखी, दूसरों की खोलता
गन्ध को है खोजता, मूरख हिरण खोया हुआ
कोयले की खान में, हीरा कहाँ से आयेगा
मैल है मन में भरा, केवल बदन धोया हुआ
अब तो माली ही वतन का खाद-पानी खा रहे
इस लिए आता नज़र सुरभित सुमन रोया हुआ
खोट ने पॉलिश लगाकर "रूप" कंचन का धरा
पुण्य ने बनकर श्रमिक अब, पाप को ढोया हुआ
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शुक्रवार, 2 नवंबर 2012
"सुरभित सुमन रोया हुआ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बहुत गूढ़ गूढ़ बातें कही आपने शास्त्री जी | बहुत उम्दा |
जवाब देंहटाएंबहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......कितने खुबसूरत जज्बात डाल दिए हैं आपने..........बहुत खूब,
जवाब देंहटाएंकवच कर भर कंकन घन रूप कंचन का धरा ।
जवाब देंहटाएंपुण्य श्रमिक के कर स्वेद सीकर पिरोया हुवा ।।
कोयले की खान में, हीरा कहाँ से आयेगा
जवाब देंहटाएंमैल है मन में भरा, केवल बदन धोया हुआ,,,,,बहुत उम्दा प्रस्तुति,,,,
सभी ब्लॉगर परिवार को करवाचौथ की बहुत बहुत शुभकामनाएं,,,,,
RECENT POST : समय की पुकार है,
नीड़ में सबके यहाँ प्रारब्ध है सोया हुआ
जवाब देंहटाएंकाटते उसकी फसल जो बीज था बोया हुआ
अब तो माली ही वतन का खाद-पानी खा रहे
इस लिए आता नज़र सुरभित सुमन रोया हुआ
बहुत सुन्दर !
बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएंशुक्रवार, 2 नवम्बर 2012
जवाब देंहटाएं"सुरभित सुमन रोया हुआ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
नीड़ में सबके यहाँ प्रारब्ध है सोया हुआ
काटते उसकी फसल जो बीज था बोया हुआ
खोलकर अपनी न देखी, दूसरों की खोलता
गन्ध को है खोजता, मूरख हिरण खोया हुआ
कोयले की खान में, हीरा कहाँ से आयेगा
मैल है मन में भरा, केवल बदन धोया हुआ
अब तो माली ही वतन का खाद-पानी खा रहे
इस लिए आता नज़र सुरभित सुमन रोया हुआ
खोट ने पॉलिश लगाकर "रूप" कंचन का धरा
पुण्य ने बनकर श्रमिक अब, पाप को ढोया हुआ
कोयले की धुंध में पूरी अटी सरकार है ,
भ्रष्ट होने का यहाँ ,सबको मिला अधिकार है .
आज के राजनीतिक परिवेश का परिपूर्ण प्रक्षेपण करती रचना है .बधाई शास्त्री
जी .
शुक्रवार, 2 नवम्बर 2012
जवाब देंहटाएं"सुरभित सुमन रोया हुआ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
नीड़ में सबके यहाँ प्रारब्ध है सोया हुआ
काटते उसकी फसल जो बीज था बोया हुआ
खोलकर अपनी न देखी, दूसरों की खोलता
गन्ध को है खोजता, मूरख हिरण खोया हुआ
कोयले की खान में, हीरा कहाँ से आयेगा
मैल है मन में भरा, केवल बदन धोया हुआ
अब तो माली ही वतन का खाद-पानी खा रहे
इस लिए आता नज़र सुरभित सुमन रोया हुआ
खोट ने पॉलिश लगाकर "रूप" कंचन का धरा
पुण्य ने बनकर श्रमिक अब, पाप को ढोया हुआ
कोयले की धुंध में पूरी अटी सरकार है ,
भ्रष्ट होने का यहाँ ,सबको मिला अधिकार है .
आज के राजनीतिक परिवेश का परिपूर्ण प्रक्षेपण करती रचना है .बधाई शास्त्री
जी .
अपना दल और अपना बल है ,पैंसठ सालों का अनुभव है ,
जवाब देंहटाएंहमने तो बस यह सीखा है ,भोजन भूखे का संबल है .
(2)
इत्मीनान से भोजन करके ,खूब मौज आराम करो ,
आरोपों से क्या डरना है ,अपना अपना काम करो .
खोट ने पॉलिश लगाकर "रूप" कंचन का धरा
जवाब देंहटाएंपुण्य ने बनकर श्रमिक अब, पाप को ढोया हुआ-----बहुत सार्थक पंक्तियाँ आज के सामजिक परिवेश में करारा व्यंग्य करती हुई शानदार प्रस्तुति बधाई आपको
कोयले की खान में, हीरा कहाँ से आयेगा
जवाब देंहटाएंमैल है मन में भरा, केवल बदन धोया हुआ
बहुत सुंदर, काश लोग समझ पाएं
बहुत गहरे भाव सहेजे हैं..
जवाब देंहटाएंअति सुन्दर ....बिलकुल सच्ची बातें काफी गहरी.
जवाब देंहटाएंसुमनों की 'पंखुडियां' नोचीं हास किया है मैला |
जवाब देंहटाएं'आस्थाओं'को किया मलिन,'विशवास' किया है मैला ||
वास५तव में आप की बात सटीक है !
मन मे मैल भरा तो साबुन लगाने से का होय
जवाब देंहटाएंइन्ही पॅिक्तयो से सम्बंधित रचनाओ को प्रकट कर धयानाकर्षण के लिये धन्यवाद
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