कल अन्तस्थ और परसों ऊष्म पर
मुक्तक लगाने है!
उसके बाद फिर से
अपने रंग में आ जाऊँगा!
“व्यञ्जनावली-पवर्ग”
--
"प"
![]()
"प" से पर्वत और पतंग!
पत्थर
हैं पहाड़ के अंग!
मानो
तो ये महादेव हैं,
बहुत
निराले इनके ढंग!!
--
"फ"
फ
से फल गुण का भण्डार!
फल
सबसे अच्छा आहार!
फ
से बन जाता फव्वारा,
फव्वारे
की ऊँची धार!!
--
"ब"
"ब" से बरगद है बन जाता!
घनी
छाँव हमको दे जाता!
ब
से बगुला, बकरी-बच्चा,
बकरी-बकरा
पत्ते खाता!!
--
"भ"
"भ" से भगत, भक्ति
में लीन!
तन-मन
ईश्वर में तल्लीन!!
कर्म
भाग्य का निर्माता है,
अकर्मण्य
जन भाग्य-विहीन!!
--
"म"
"म" से मछली जल की रानी!
मछली
का जीवन है पानी!
माता
का नाता ममता से,
ममता
कभी नही बेगानी!!
|
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गुरुवार, 24 जुलाई 2014
“हिन्दी व्यञ्जनावली-पवर्ग” (डॉ0 रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
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शास्त्री जी, बहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंBAHUT SUNDAR .... AAPKI BAAL KAVITAYEN MAN KO BAHUT BHATI HAI BACHPAN SABSE PYARA
जवाब देंहटाएंसुंदर, सरल और सार्थक
जवाब देंहटाएंबेहतरीन...
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