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रिम-झिम करता सावन आया।
गरमी का हो गया सफाया।।
उगे गगन में गहरे बादल,
भरा हुआ जिनमें निर्मल जल,
इन्द्रधनुष ने रूप दिखाया।
श्वेत-श्याम घन बहुत निराले,
आसमान पर डेरा डाले,
कौआ काँव-काँव चिल्लाया।
जोर-शोर से बिजली कड़की,
सहम उठे हैं लड़का-लड़की,
देख चमक सूरज शर्माया।
खेत धान से धानी-धानी,
घर मे पानी बाहर पानी,
मेघों ने पानी बरसाया।
लहरों का स्वरूप है चंगा,
मचल रहीं हैं यमुना-गंगा,
पेड़ों ने नवजीवन पाया।
झूले पड़े हुए घर-घर में,
चहल-पहल है प्रांत-नगर में,
झूल रही हैं ललिता-माया।
ठलुओं ने महफिल है जोड़ी,
मजा दे रही चाय-पकौड़ी,
मानसून ने मन भरमाया। |
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रविवार, 6 जुलाई 2014
"मानसून ने मन भरमाया" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुंदर प्रस्तुति आदरणीय , आप की ये रचना चर्चामंच के लिए चुनी गई है , सोमवार दिनांक - ७ . ७ . २०१४ को आपकी रचना का लिंक चर्चामंच पर होगा , कृपया पधारें धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ।
जवाब देंहटाएंवाह शास्त्री जी ... मौसम के आगमन की दस्तक दे दी आपने ....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर गीत ...
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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