चरण-कमल वो धन्य हैं, समाज को जो दें दिशा, वे चाँद-तारे धन्य हैं, हरें जो कालिमा निशा, प्रसून ये महान हैं, प्रकृति है सँवारती। सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।। जो चल रहें हैं, रात-दिन, वो चेतना के दूत है, समाज जिनसे है टिका, वे राष्ट्र के सपूत है, विकास के ये दीप हैं, मही इन्हें दुलारती। सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।। जो राम का चरित लिखें, वो राम के अनन्य हैं, जो जानकी को शरण दें, वो वाल्मीकि धन्य हैं, ये वन्दनीय हैं सदा, उतारो इनकी आरती। सराहनीय शूद्र हैं, पुकारती है भारती।। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 30 नवंबर 2010
"चरण-कमल" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
सोमवार, 29 नवंबर 2010
"ग़ज़ल:आशा शैली" (प्रस्तोता:डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
बात दिल की जहाँ-जहाँ रखिए
एक परदा भी दरम्याँ रखिए
घोंसले जब बुने हैं काँटों से
क्यों बचाकर हथेलियाँ रखिए
हौसले अपने आज़माने को
हर कदम साथ आँधियाँ रखिए
मौसमों से नज़र मिलाने को
सर पे कोई न आसमाँ रखिए
हर जगह नाम उनका लिक्खा है
फिक्र है दासतां कहाँ रखिए
माया-ए-ग़म छुपाएँ किस-किस से
कीमती शै को अब कहाँ रखिए
बात दिल की किसी से तो कहिए
पास बेहतर है राज़दाँ रखिए
तब जनम लेगी नग़मगी शैली
दिल के जख्मों पे जब ज़ुबां रखिए
asha.shaili@gmail.com
रविवार, 28 नवंबर 2010
"आपको शत नमन!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
शनिवार, 27 नवंबर 2010
"माता के उपकार बहुत..." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
- माता के उपकार बहुत,वो भाषा हमें बताती है!उँगली पकड़ हमारी माता,चलना हमें सिखाती है!!दुनिया में अस्तित्व हमारा,माँ के ही तो कारण है,खुद गीले में सोकर,वो सूखे में हमें सुलाती है!उँगली पकड़ हमारी……..देश-काल चाहे जो भी हो,माँ ममता की मूरत है,धोकर वो मल-मूत्र हमारा,पावन हमें बनाती है!उँगली पकड़ हमारी……..पुत्र कुपुत्र भले हो जायें,होती नही कुमाता माँ,अपने हिस्से की रोटी,बेटों को सदा खिलाती है!उँगली पकड़ हमारी……..ऋण नही कभी चुका सकता,कोई भी जननी माता का,माँ का आदर करो सदा,यह रचना यही सिखाती है!उँगली पकड़ हमारी……
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...