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गुरुवार, 18 नवंबर 2010
"लगे खाने-कमाने में" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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मुखौटे राम के पहने बसे रावण जमाने में।
जवाब देंहटाएंलुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
अरे वाह..क्या बात है शास्त्री जी. बहुत सुन्दर.
मुखौटे राम के पहने बसे रावण जमाने में।
जवाब देंहटाएंलुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
वाह !! शास्त्री जी ... बहुत गहरी बाते कही है आपने रचना के माध्यम से ... आभार
बहुत सही और सटीक बात समेटे हैं पंक्तियाँ....यही हो रहा है....
जवाब देंहटाएंलुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
जवाब देंहटाएंसटीक रचना .. बहुत सुन्दर
पीड़ाजनक स्थिति है समाज की।
जवाब देंहटाएंश्रमिक का हो रहा शोषण, धनिक के कारखाने में।
जवाब देंहटाएंलुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
..सच को सुन्दर शब्दों में ढाला...बधाई.
मुखौटे राम के पहने बसे रावण जमाने में।
जवाब देंहटाएंलुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
यही तो हो रहा है……………आज के हालात का सटीक चित्रण्…………बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
आदरणीय रूपचंद्र शास्त्री जी बहुत ही अशक्त और लयबद्ध प्रस्तुति| बधाई|
जवाब देंहटाएंmeri samajh se aaj ravan itne aatmvishvas me hai ki use kisi makhaute ki aavshayakta hi nahi hai .yatharth se sakshatkaar karati gambheer rachna.aakrosh ko jagati aisi rachna jaisi ''dinkar'ji ki kavitaye karti hai kranti ka srijan.
जवाब देंहटाएंआज के समाज की सच्ची तस्वीर दिखा दी है ...
जवाब देंहटाएंमुखौटे राम के पहने बसे रावण जमाने में।
जवाब देंहटाएंलुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने.कमाने में।।
बहुत तीखा कटाक्ष किया है आपने।
...रचना बहुत सशक्त है।
मुखौटे राम के पहने बसे रावण जमाने में।
जवाब देंहटाएंलुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने.कमाने में।।
बहुत बेहतरीन लिखा है शास्त्री जी, 100 प्रतिशत सहमत!
प्रेमरस.कॉम
आज के कटु हालात का उत्तम चित्रण शाश्त्री जी
जवाब देंहटाएंलुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में।।
जवाब देंहटाएंsatya!!!
sundar rachna!
मयंक जी, सच्चाई को बडी बेबाकी से बयान किया आपने। बधाई।
जवाब देंहटाएं---------
वह खूबसूरत चुड़ैल।
क्या आप सच्चे देशभक्त हैं?
लुटेरे ओढ़ पीताम्बर लगे खाने-कमाने में
जवाब देंहटाएंयह इस दौर की सच्चाई का शब्दश: बयान है ।