जब आती है हवा, तभी बूटा-पत्ता हिलता है।।
जीवन कभी कठोर कठिन है, कभी सरल सा है,
भोजन अमृत-तुल्य कभी है, कभी गरल सा है,
माली बिना किसी उपवन में, फूल नही खिलता हैं।
जब आती है हवा, तभी बूटा-पत्ता हिलता है।।
सावन मे भी कभी-कभी सूखा भी होता है,
खाना खाकर कभी, उदर भूखा भी होता है,
काँटे जिनकी करें सुरक्षा उनका तन नही छिलता है।
जब आती है हवा, तभी बूटा-पत्ता हिलता है।।
नर्म-नर्म बिस्तर में, सुख की नींद नही आती है,
किन्तु श्रमिक को कंकड़ की ढेरी पर आ जाती है,
तप और श्रम से पत्थर का भी हृदय पिघलता है।
जब आती है हवा, तभी बूटा-पत्ता हिलता है।।
मयंक जी,
जवाब देंहटाएंअभिवंदन
रचना पढ़ कर बहुत अच्छा लगा .
वाह क्या लिखा है आपने ...अति सुन्दर.
- विजय तिवारी 'किसलय'
मयंक जी,
जवाब देंहटाएंअभिवंदन
रचना पढ़ कर बहुत अच्छा लगा .
वाह क्या लिखा है आपने ...अति सुन्दर.
नर्म-नर्म बिस्तर में, सुख की नींद नही आती है, किन्तु श्रमिक को कंकड़ की ढेरी पर आ जाती है, तप और श्रम से पत्थर का भी हृदय पिघलता है। जब आती है हवा, तभी बूटा-पत्ता हिलता है।।
- विजय तिवारी 'किसलय'
बहुत सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.... आभार
जवाब देंहटाएंपहली पंक्ति में शायद "यमक" अलंकार का प्रयोग हुआ है. मुझे निश्चित पता नहीं. लेकिन एक अन्तर और दूसरे अन्तर के अन्तर ने आनन्द ला दिया..
जवाब देंहटाएंmayank ji,
जवाब देंहटाएंnamaskar
vastvikta ke dharatal ko sparsh karti aapki kavita bahut achhi lagi.prabhavi prastuti.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ....अंतर शब्द का प्रयोग बहुत अच्छा लगा ...
जवाब देंहटाएंनर्म-नर्म बिस्तर में, सुख की नींद नही आती है,
जवाब देंहटाएंकिन्तु श्रमिक को कंकड़ की ढेरी पर आ जाती है,
तप और श्रम से पत्थर का भी हृदय पिघलता है।
जब आती है हवा, तभी बूटा-पत्ता हिलता है।
संवेदनशील पंक्तियाँ.बहुत सुन्दर.
बहुत ही सुन्दर लिखा है आपने .. अंतर्मन भी दो तरीके से .. और हर विरोधी परिस्थितयो पर पैनी नजर रखते हुवे कविता शानदार
जवाब देंहटाएंसमाजवादी सुंदर गीत !
जवाब देंहटाएंवाह .... बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंbahot sundar.
जवाब देंहटाएंमेरे एक मित्र जो गैर सरकारी संगठनो में कार्यरत हैं के कहने पर एक नया ब्लॉग सुरु किया है जिसमें सामाजिक समस्याओं जैसे वेश्यावृत्ति , मानव तस्करी, बाल मजदूरी जैसे मुद्दों को उठाया जायेगा | आप लोगों का सहयोग और सुझाव अपेक्षित है |
जवाब देंहटाएंhttp://samajik2010.blogspot.com/2010/11/blog-post.html
कांटे जिनकी करे सुरक्षा उनका तन नहीं हिलता है ...
जवाब देंहटाएंवाह ..
मेहनतकश लोगों की बेफिक्र नींद ही इन्हें जिन्दा रखती है ...
जब आती है हवा, तभी बूटा-पत्ता हिलता ....satya vachan........bahut achchhi prastuti
जवाब देंहटाएंनर्म-नर्म बिस्तर में, सुख की नींद नही आती है,
जवाब देंहटाएंकिन्तु श्रमिक को कंकड़ की ढेरी पर आ जाती है,
तप और श्रम से पत्थर का भी हृदय पिघलता है।
जब आती है हवा, तभी बूटा-पत्ता हिलता है।।
बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना शास्त्री जी ...
pranaam guru ji!!
जवाब देंहटाएंबेहतरीन!
जवाब देंहटाएंसावन मे भी कभी-कभी सूखा भी होता है,
जवाब देंहटाएंखाना खाकर कभी, उदर भूखा भी होता है,
काँटे जिनकी करें सुरक्षा उनका तन नही छिलता है।
बेजोड उम्दा प्रस्तुति……………बहुत ही अच्छी लगी ये रचना…………गज़ब का प्रयोग्।
मयंक जी, जीवन के सार को कविता के रूप में आपने बहुत सुंदर ढंग से उतार दिया है। बधाई।
जवाब देंहटाएंtap aur shram se kya nahi sambhav!
जवाब देंहटाएंsundar sandeshpoorna rachna!!!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्द रचना ।
जवाब देंहटाएंअंतर का सुन्दर प्रयोग! वाह!
जवाब देंहटाएंसंदेशपूर्ण रचना . और अंतर का प्रयोग बहुत अच्छा लगा.
जवाब देंहटाएंसाधारण जीवनों के असाधारणता के आयामों को व्याख्यायित करती खूबसूरत और भाव प्रवण रचना. आभार.
जवाब देंहटाएंसादर,
डोरोथी.
तप और श्रम, यही दो आवश्यक तत्व हैं जीवन में। सुन्दर कविता।
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