अमानत में ख़यानत का, चलन बढ़ने लगा है। हिमायत में हिमाक़त का, चलन बढ़ने लगा है।। न्याय की उम्मीद मत रखना बहुत ज्यादा, अदालत में हुकूमत का, चलन बढ़ने लगा है। ये कैसा दौर आया है, जवानी हो रही पागल, नफासत में नज़ाकत का, चलन बढ़ने लगा है। बचा अब कुछ नही खालिस, धरम-ईमान बिकता है, लियाकत में मिलावट का, चलन बढ़ने लगा है। भरोसा अब करें किस पर, स्वयं विश्वास छलता है, शराफत में शरारत का, चलन बढ़ने लगा है। नहीं महफूज़ है कोई, दर-ओ-दरगाह में अब तो, हिफाजत में हज़ामत का, चलन बढ़ने लगा है। बढ़ा दल-दल, नये नित बन रहे हैं दल, सियासत में बगावत का, चलन बढ़ने लगा है। नये युग का विधाता बन गया है आज कम्प्यूटर, लिखावट में गिरावट का, चलन बढ़ने लगा है। पिलापी छा रही मुखपर, नहीं यौवन झलकता है, तरावट में थकावट का, चलन बढ़ने लगा है। नये इस आदमी में, आदमीयत गुम हुई अब तो, नियामत में निज़ामत का, चलन बढ़ने लगा है। भरे हैं धन तिजोरी में, मगर सन्तोष गायब है, सदाकत में शिकायत का, चलन बढ़ने लगा है। |
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मंगलवार, 2 नवंबर 2010
“.. …चलन बढ़ने लगा है!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
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बज़ से प्राप्त टिप्पणी!
जवाब देंहटाएं--
Anand G.Sharma आनंद जी.शर्मा -
आदरणीय शाश्त्री जी,
बहुत ही सामयिक - सुन्दर अभिव्यक्ति |
धन्यवाद शब्द बहुत छोटा है आपके विचारों की श्रेष्ट के सामने |
आपका अपना,
आनन्द गोपाल शर्मा 11:00 am
नये युग का विधाता बन गया है आज कम्प्यूटर,
जवाब देंहटाएंलिखावट में गिरावट का, चलन बढ़ने लगा है।
अरे वाह! शास्त्री जी! क्या शानदार ग़ज़ल लिखी है आपने।
यह ग़ज़ल ...
कभी सादगी के अंदाज में ताना मारती है.......
तो कभी अनुरोध और विनती करती है ....
तो कभी इसमें सांत्वना के स्वर हैं
कुल मिलाकर कहूंगा कि ...
आप एक समर्थ सर्जक हैं!
बढ़ा दल-दल, नये नित बन रहे हैं दल,
जवाब देंहटाएंसियासत में बगावत का, चलन बढ़ने लगा है।
नये युग का विधाता बन गया है आज कम्प्यूटर,
लिखावट में गिरावट का, चलन बढ़ने लगा है।
नये इस आदमी में, आदमीयत गुम हुई अब तो,
नियामत में निज़ामत का, चलन बढ़ने लगा है।
भरे हैं धन तिजोरी में, मगर सन्तोष गायब है,
सदाकत में शिकायत का, चलन बढ़ने लगा है।
सभी शेर बहुत सुन्दर और आज के स्थिती को बयाँ कर रहे हैं। बधाई। दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।
हमारे देखे तो इतनी भी नहीं बदली दुनिया,
जवाब देंहटाएंबस शायरी में सुगबुगाहट का चलन बदने लगा है.
कविताई तो आपकी जोरदार है, पर हमने थोड़ी उम्मीदों की भी दरकार है ...
लिखते रहिये ....
पिलापी छा रही मुखपर, नहीं यौवन झलकता है,
जवाब देंहटाएंतरावट में थकावट का, चलन बढ़ने लगा है।
नये इस आदमी में, आदमीयत गुम हुई अब तो,
नियामत में निज़ामत का, चलन बढ़ने लगा है।
भरे हैं धन तिजोरी में, मगर सन्तोष गायब है,
सदाकत में शिकायत का, चलन बढ़ने लगा है।
आजकल बडी तल्ख सच्चाइयों से रु-ब-रु करवा रहे हैं…………सुन्दर अभिव्यक्ति।
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबचा अब कुछ नही खालिस, धरम-ईमान बिकता है,
जवाब देंहटाएंलियाकत में मिलावट का, चलन बढ़ने लगा है।
शास्त्री जीबहुत खुब लिखा आप ने आज पर, धन्यवाद
भाषा पर बहुत अच्छी पकड़ है आपकी
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम
नये इस आदमी में, आदमीयत गुम हुई अब तो,
जवाब देंहटाएंनियामत में निज़ामत का, चलन बढ़ने लगा है।
बहुत सुन्दर.....
वाह ! वाह बहुत उम्दा पोस्ट ...आभार
जवाब देंहटाएंनये इस आदमी में, आदमीयत गुम हुई अब तो,
जवाब देंहटाएंनियामत में निज़ामत का, चलन बढ़ने लगा है।
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bahut umda rachna.
aabhar .
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