अमानत में ख़यानत का, चलन बढ़ने लगा है। हिमायत में हिमाक़त का, चलन बढ़ने लगा है।। न्याय की उम्मीद मत रखना बहुत ज्यादा, अदालत में हुकूमत का, चलन बढ़ने लगा है। ये कैसा दौर आया है, जवानी हो रही पागल, नफासत में नज़ाकत का, चलन बढ़ने लगा है। बचा अब कुछ नही खालिस, धरम-ईमान बिकता है, लियाकत में मिलावट का, चलन बढ़ने लगा है। भरोसा अब करें किस पर, स्वयं विश्वास छलता है, शराफत में शरारत का, चलन बढ़ने लगा है। नहीं महफूज़ है कोई, दर-ओ-दरगाह में अब तो, हिफाजत में हज़ामत का, चलन बढ़ने लगा है। बढ़ा दल-दल, नये नित बन रहे हैं दल, सियासत में बगावत का, चलन बढ़ने लगा है। नये युग का विधाता बन गया है आज कम्प्यूटर, लिखावट में गिरावट का, चलन बढ़ने लगा है। पिलापी छा रही मुखपर, नहीं यौवन झलकता है, तरावट में थकावट का, चलन बढ़ने लगा है। नये इस आदमी में, आदमीयत गुम हुई अब तो, नियामत में निज़ामत का, चलन बढ़ने लगा है। भरे हैं धन तिजोरी में, मगर सन्तोष गायब है, सदाकत में शिकायत का, चलन बढ़ने लगा है। |
"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
मंगलवार, 2 नवंबर 2010
“.. …चलन बढ़ने लगा है!” (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री “मयंक”)
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
बज़ से प्राप्त टिप्पणी!
जवाब देंहटाएं--
Anand G.Sharma आनंद जी.शर्मा -
आदरणीय शाश्त्री जी,
बहुत ही सामयिक - सुन्दर अभिव्यक्ति |
धन्यवाद शब्द बहुत छोटा है आपके विचारों की श्रेष्ट के सामने |
आपका अपना,
आनन्द गोपाल शर्मा 11:00 am
नये युग का विधाता बन गया है आज कम्प्यूटर,
जवाब देंहटाएंलिखावट में गिरावट का, चलन बढ़ने लगा है।
अरे वाह! शास्त्री जी! क्या शानदार ग़ज़ल लिखी है आपने।
यह ग़ज़ल ...
कभी सादगी के अंदाज में ताना मारती है.......
तो कभी अनुरोध और विनती करती है ....
तो कभी इसमें सांत्वना के स्वर हैं
कुल मिलाकर कहूंगा कि ...
आप एक समर्थ सर्जक हैं!
बढ़ा दल-दल, नये नित बन रहे हैं दल,
जवाब देंहटाएंसियासत में बगावत का, चलन बढ़ने लगा है।
नये युग का विधाता बन गया है आज कम्प्यूटर,
लिखावट में गिरावट का, चलन बढ़ने लगा है।
नये इस आदमी में, आदमीयत गुम हुई अब तो,
नियामत में निज़ामत का, चलन बढ़ने लगा है।
भरे हैं धन तिजोरी में, मगर सन्तोष गायब है,
सदाकत में शिकायत का, चलन बढ़ने लगा है।
सभी शेर बहुत सुन्दर और आज के स्थिती को बयाँ कर रहे हैं। बधाई। दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें।
हमारे देखे तो इतनी भी नहीं बदली दुनिया,
जवाब देंहटाएंबस शायरी में सुगबुगाहट का चलन बदने लगा है.
कविताई तो आपकी जोरदार है, पर हमने थोड़ी उम्मीदों की भी दरकार है ...
लिखते रहिये ....
पिलापी छा रही मुखपर, नहीं यौवन झलकता है,
जवाब देंहटाएंतरावट में थकावट का, चलन बढ़ने लगा है।
नये इस आदमी में, आदमीयत गुम हुई अब तो,
नियामत में निज़ामत का, चलन बढ़ने लगा है।
भरे हैं धन तिजोरी में, मगर सन्तोष गायब है,
सदाकत में शिकायत का, चलन बढ़ने लगा है।
आजकल बडी तल्ख सच्चाइयों से रु-ब-रु करवा रहे हैं…………सुन्दर अभिव्यक्ति।
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंबचा अब कुछ नही खालिस, धरम-ईमान बिकता है,
जवाब देंहटाएंलियाकत में मिलावट का, चलन बढ़ने लगा है।
शास्त्री जीबहुत खुब लिखा आप ने आज पर, धन्यवाद
भाषा पर बहुत अच्छी पकड़ है आपकी
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम
नये इस आदमी में, आदमीयत गुम हुई अब तो,
जवाब देंहटाएंनियामत में निज़ामत का, चलन बढ़ने लगा है।
बहुत सुन्दर.....
वाह ! वाह बहुत उम्दा पोस्ट ...आभार
जवाब देंहटाएंनये इस आदमी में, आदमीयत गुम हुई अब तो,
जवाब देंहटाएंनियामत में निज़ामत का, चलन बढ़ने लगा है।
----
bahut umda rachna.
aabhar .
.