कल केवल कुहरा आया था, अब बादल भी छाया है। हाय भयानक इस सर्दी ने, सबका हाड़ कँपाया है।। भीनी-भीनी पड़ी फुहारें, झीना-झीना उजियारा। आग सेंकता सरजू दादा, दिन में छाया अँधियारा। कॉफी और चाय का प्याला, सबसे ज्यादा भाया है।। आलू और शकरकन्दी भी, सबके मन को भाते हैं। गर्म-गर्म गाजर का हलवा, खुश होकर सब खाते हैं। कम्बल-लोई और कोट से, कोमल बदन छिपाया है।। हीटर-गीजर और अँगीठी, गज़क, रेवड़ी-मूँगफली। गर्म समोसे, टिक्की-डोसा, अच्छी लगती हैं इडली। मौसम के अनुकूल बया ने, सुन्दर नीड़ बनाया है।। |
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रविवार, 11 दिसंबर 2011
"झीना-झीना उजियारा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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मौसम के मनोहारी छटा को बताती सुंदर रचना.....लाजवाब।
जवाब देंहटाएंकई दशकों से झारखण्ड छोड़कर, सर्दियों में लखनऊ नहीं गया हूँ | इस बार झाँसी से बेटी को लाना है और बड़ी बेटी को लखनऊ में मिलना है |
जवाब देंहटाएंडराइये मत सर्दी से,
गुरु जी !!
सर्दी के अपने अलग रंग।
जवाब देंहटाएंआनन्द आ गया, सुन्दर,....
जवाब देंहटाएंओह! बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
जवाब देंहटाएंसर्दी के रंगों को खूबसूरती से उकेरा है आपने.
बहुत बहुत आभार.
मौसम की रचना!
जवाब देंहटाएंDELHI / NCR mein abhi bhee sardi ka asli roop aanaa baaki hai!
जवाब देंहटाएंसर्दी की अच्छी अच्छी डिशेज़...वाह!
जवाब देंहटाएंठंड की ठिठुरन में खाने का मजा ....वाह!!! मजा आ गया.
जवाब देंहटाएंवाह ...बहुत ही बढि़या।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंमौसम का हाल बेहाल है सर
वाह ठंड
जवाब देंहटाएंआह ठंड
बहुत बढ़िया ....
जवाब देंहटाएंहीटर-गीजर और अँगीठी,
जवाब देंहटाएंगज़क, रेवड़ी-मूँगफली।
-- वाह ! ! 'पहाड़ों' की ठण्ड याद आगई.
बहुत सुंदर!
जवाब देंहटाएंवाह।
जवाब देंहटाएंठंड के मौसम में सच में ये सब प्यारे लगते हैं।
सुंदर रचना।