जीवन के इस दाँव-पेंच में, मैंने सब कुछ हार दिया था। छला प्यार में उसने मुझको, जिससे मैंने प्यार किया था।। जब राहों पर कदम बढ़ाया, काँटों ने उलझाया मुझको। जब गुलशन के पास गया तो, फूलों ने ठुकराया मुझको। जिसको दिल की दौलत सौंपी, उसने ही प्रतिकार लिया था। छला प्यार में उसने मुझको, जिससे मैंने प्यार किया था।। संघर्षों के तूफानों ने, जब-जब नौका को भटकाया। तब-तब बहुत सावधानी से, मैंने था पतवार चलाया। डूब गया मैं तट पर आकर, गहरा सागर पार किया था। छला प्यार में उसने मुझको, जिससे मैंने प्यार किया था।। बनकर कृष्ण-कन्हैया कब से, खोज रहा हूँ मैं राधा को। अपनी पगडण्डी से कब से, हटा रहा हूँ मैं बाधा को। मोहक मुस्कानों ने लूटा, मैंने जब मनुहार किया था। छला प्यार में उसने मुझको, जिससे मैंने प्यार किया था।। |
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मंगलवार, 13 दिसंबर 2011
"जीवन के दाँव-पेंच" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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डूब गया मैं तट पर आकर,गहरा सागर पार किया था।छला प्यार में उसने मुझको,जिससे मैंने प्यार किया था।
जवाब देंहटाएंBahut hee sundar shashtriji !
bahut sunder bhav hai rachna ke
जवाब देंहटाएंछला प्यार में उसने मुझको,
जवाब देंहटाएंजिससे मैंने प्यार किया था।।
छले जाने पर भी प्रेम की यात्रा तो चलती ही रहती है... जीवन की ही तरह! सुन्दर रचना!
संघर्षों के तूफानों ने,
जवाब देंहटाएंजब-जब नौका को भटकाया।
तब-तब बहुत सावधानी से,
मैंने था पतवार चलाया।
डूब गया मैं तट पर आकर,
गहरा सागर पार किया था।
छला प्यार में उसने मुझको,
जिससे मैंने प्यार किया था।।
्यही तो है जीवन का यथार्थ …………आपने बहुत खूबसूरती से इसे पिरोया है…………एक शानदार भावभीनी रचना।
जीवन के संघर्षों में जब पतवार संभाल कर चलाई तो पार तो हो ही जाना है ... अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंडूब गया में तट पर आकर
जवाब देंहटाएंगहरा सागर पार किया था ।
वाह बहुत ही सुंदर मानोभावों से रची बेहतरीन रचना कभी समय मिले तो आयेगा मेरे दूसरे ब्लॉग पर अभी आपका स्वागत है http://aapki-pasand.blogspot.com/2011/12/blog-post_13.html
mohak bha bhini post.......
जवाब देंहटाएंsahilon par hi kashtiyan dooba karti haen .
pratham tippadi men kuchh gadbad hogai hae sory.
जवाब देंहटाएंmohak bhvbhini kavita hae .
SAHILON PAR HI TO KASHTIYAN DOOBA KARTI HAEN.
जीवन के इस दाँवपेंच में जीना फिर भी होगा हमको।
जवाब देंहटाएंबस किनारों ने हमको धोखा दिया सुंदर अतिसुन्दर ....
जवाब देंहटाएंडूब गया मैं तट पर आकर,गहरा सागर पार किया था।छला प्यार में उसने मुझको,जिससे मैंने प्यार किया था।
जवाब देंहटाएंbahut behtreen likha hai bahut sundar.
dhnya ho prabhu !
जवाब देंहटाएंatyant sashakt rachna !
jai ho !
बहुत उत्तम प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंछला प्यार में उसने मुझको,
जवाब देंहटाएंजिससे मैंने प्यार किया था।।
दुर्भाग्य से प्यार में यही तो होता है
संघर्षों के तूफानों ने,
जवाब देंहटाएंजब-जब नौका को भटकाया।
तब-तब बहुत सावधानी से,
मैंने था पतवार चलाया।
डूब गया मैं तट पर आकर,
गहरा सागर पार किया था।
वाह! सुन्दर गीत सर...
सादर..
बाप रे बाप!
जवाब देंहटाएंआपकी कविता को लगता है भाभी जी ने नही पढा है.आपको तो क्या पहले आपकी राधा का पता ही पूछतीं.
खैर,बहुत खूबसूरत उद्गार है आपके.
आभार.
सुन्दर रचना!
जवाब देंहटाएंprem ke roop anokhe..
जवाब देंहटाएंbeautiful romantic creation from your side this time ;-)
जवाब देंहटाएंसुन्दर शब्दों से सुसज्जित जीवन की सच्चाई एवं संघर्ष को आपने बखूबी शब्दों में पिरोया है! लाजवाब प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंजब गुलशन के पास गया तो,
जवाब देंहटाएंफूलों ने ठुकराया मुझको।
जिसको दिल की दौलत सौंपी,
उसने ही प्रतिकार लिया था।
बहुत सुंदर मन को छूता हुआ गीत.
जिसको दिल की दौलत सौंपी,
जवाब देंहटाएंउसने ही प्रतिकार लिया था।
छला प्यार में उसने मुझको,
जिससे मैंने प्यार किया था।।
कुछ ऐसे ही ख़यालात मेरे भी शब्दों में ढल गए....
गर दो दिलों में इश्क हो तो बनता है रिश्ता
वर्ना बहुत से जिस्म बाजारों में पड़े हैं
''छला प्यार में उसने मुझको,
जवाब देंहटाएंजिससे मैंने प्यार किया था।।''
गहरे अहसास।
सुंदर रचना।
किसी अपेक्षा से किया गया प्यार कोई व्यवसाय ही रहा होगा। व्यवसाय में घाटा-नफा होता रहता है।
जवाब देंहटाएंवाह ... आहूत ही मधुर गीत की तरह पनकी डर पंक्ति लिखी कविता ...
जवाब देंहटाएंअच्छी लगी रचना .
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