फूलों को रहने देना, काँटे बुहार लेना।
जीवन के रास्तों को, ढंग से निखार लेना।
सावन की घन-घटाएँ, बरसे बिना न रहतीं,
बारिश की मार से तुम, मन को न हार देना।
इठला रहे हैं अब तो, सूखी नदी-गधेरे,
गर हो सके तो इनसे, मस्ती उधार लेना।
धरती में लहलहाते, बिरुए तुम्हें बुलाते,
करके निराई इनका, आँचल सँवार देना।
मस्ती में झूमते हैं, गुंजार कर रहे हैं,
तुम सादगी से अपने, लम्हें गुज़ार देना।
चढ़ती हुई नदी का, तो रूप मस्त होता,
तुम ज़लज़ले से अपना, यौवन उबार लेना।
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बुधवार, 17 जुलाई 2013
"ग़ज़ल-काँटे बुहार लेना" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर सीख, प्रेरित करती..
जवाब देंहटाएंमस्ती में झूमते हैं, गुंजार कर रहे हैं,
जवाब देंहटाएंतुम सादगी से अपने, लम्हें गुज़ार देना।
Bahut sundar !
फूलों को रहने देना, काँटे बुहार लेना।
जवाब देंहटाएंजीवन के रास्तों को,ढंग से निखार लेना।
बहुत उम्दा!!! क्या बात है
RECENT POST : अभी भी आशा है,
सुन्दर गजल-
जवाब देंहटाएंआभार गुरूजी-
उज्जवल जीवन के हसीं नुस्खे ...
जवाब देंहटाएंआभार!
बहुत ही बेहतरीन रचना,,,,
जवाब देंहटाएं:-)
वाह....
जवाब देंहटाएंधरती में लहलहाते, बिरुए तुम्हें बुलाते,
करके निराई इनका, आँचल सँवार देना।
सुन्दर...
बहुत सुन्दर भाव...
सादर
अनु
फूलों को रहने देना, काँटे बुहार लेना।
जवाब देंहटाएंजीवन के रास्तों को, ढंग से निखार लेना।
क्या बात है.....
बहुत सुन्दर भाव.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव.
जवाब देंहटाएंजीवन के रस्ते को ढंग से निखार लेना!
जवाब देंहटाएंबढ़िया !
khoobsurat
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव,बहुत ही बेहतरीन रचना,सादर
जवाब देंहटाएंआप की सभी रचनाएं मन को छूने वाली होती है...
जवाब देंहटाएंसुंदर भाव...
एक नजर इधर भी...
यही तोसंसार है...
बहुत बेहतरीन.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..अभिव्यंजना में..मेरी नई पोस्ट."कदम धरती पर ,मन में आसमान हो"
जवाब देंहटाएंआप की सभी रचनाएं मन को छूने वाली होती है,बेहतरीन रचना आभार आदरणीय।
जवाब देंहटाएं