सीधा-सादा. भोला-भाला।
बच्चों का संसार निराला।।
बचपन सबसे होता अच्छा।
बच्चों का मन होता सच्चा।
पल में रूठें, पल में मानें।
बैर-भाव को ये क्या जानें।।
प्यारे-प्यारे सहज-सलोने।
बच्चे तो हैं स्वयं खिलौने।।
बच्चों से नारी है माता।
ममता से है माँ का नाता।।
बच्चों से है दुनियादारी।
बच्चों की महिमा है न्यारी।।
कोई बचपन को लौटा दो।
फिर से बालक मुझे बना दो।।
|
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गुरुवार, 18 जुलाई 2013
"बचपन को लौटा दो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर बाल रचना-
जवाब देंहटाएंआभार गुरु जी-
सरल सहज बचपन...
जवाब देंहटाएंकाश लौट आये!
प्यारे-प्यारे बहुत सलोने।
जवाब देंहटाएंबच्चे तो हैं स्वयं खिलौने।।
सुन्दर रचना ,
जवाब देंहटाएंसुन्दर बालकविता !
जवाब देंहटाएंबचपन बार बार याद आता है..
जवाब देंहटाएंएक बार जाने के बाद बचपन वापस नही आता सिर्फ़ उसकी याद ही आती है.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुंदर बाल रचना,,
जवाब देंहटाएंRECENT POST : अभी भी आशा है,
बहुत सुंदर बाल रचना,,आभार..
जवाब देंहटाएंहर किसी का दिल यही कहता है.....
जवाब देंहटाएंबचपन जैसी कोई उम्र नहीं.. ये बात बड़े होकर समझ में आती है!
~सादर!!
वाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंप्यारी-सी यह भोली कविता,जैसे कोई निर्मल सरिता!
जवाब देंहटाएंus bachpan se tu mila de mujhe!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना....
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएं