नज़ारों में भरा ग़म है, बहारों
में नहीं दम है,
फिजाएँ भी बहुत नम हैं, सितारों में भरा तम है
हसीं
दुनिया बनाने की, हमें फुरसत नहीं मिलती।
नहीं
आभास रिश्तों का, नहीं एहसास नातों का
किसी को आदमी की है, नहीं विश्वास बातों का
बसेरे
को बसाने की, हमें फुरसत नहीं मिलती।
लुभाती
गाँव की गोरी, सिसकता प्यार भगिनी का
सुहाती
अब नहीं लोरी, मिटा उपकार जननी का
सरल
उपहार पाने की, हमें फुरसत नहीं मिलती।
नहीं
गुणवान बनने की, ललक धनवान बनने की
बुजुर्गों
की हिदायत को, जरूरत क्या समझने की
वतन
में अमन लाने की, हमें फुरसत नहीं मिलती।
भटककर
जी रही दुनिया, सिमटकर जी रही दुनिया
सभी
को चाहिएँ बेटे, सिसककर जी रही मुनिया
चहक
ग़ुलशन में लाने की, हमें फुरसत नहीं मिलती।
|
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बुधवार, 31 जुलाई 2013
"हमें फुरसत नहीं मिलती" (ड़ॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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बढिया, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी पंक्तियाँ, फुरसत तो निकालनी ही पड़ेगी, हम सबको।
जवाब देंहटाएंBAHUT SATYA AUR SAMIK
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक और सत्य.
जवाब देंहटाएंरामराम.
एक एक पंक्ति-दमदार-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें गुरु जी-
भटककर जी रही दुनिया, सिमटकर जी रही दुनिया
जवाब देंहटाएंसभी को चाहिएँ बेटे, सिसककर जी रही मुनिया
बहुत सुन्दर कविता ....
बहुत ही अच्छी पंक्तियाँ........ बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंभटककर जी रही दुनिया, सिमटकर जी रही दुनिया
जवाब देंहटाएंसभी को चाहिएँ बेटे, सिसककर जी रही मुनिया
चहक ग़ुलशन में लाने की, हमें फुरसत नहीं मिलती
बहुत सुन्दर
बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंlatest post,नेताजी कहीन है।
latest postअनुभूति : वर्षा ऋतु
खुबसूरत अभिवयक्ति......
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंwaah shastri ji!
जवाब देंहटाएंउत्कृष्ट रचना। गूगल रीडर बन्द होने के कारण ब्लाग पढ़ने में कठिनाई आ रही है, इस समस्या का निदान क्या है?
जवाब देंहटाएंbahut sundar....
जवाब देंहटाएंभटककर जी रही दुनिया, सिमटकर जी रही दुनिया
जवाब देंहटाएंसभी को चाहिएँ बेटे, सिसककर जी रही मुनिया
...बहुत सही कहा आपने .....आज भी मुन्ना चाहिए मुनिया नहीं, यह मानसिकता कम नहीं हुए है ....
बहुत बढ़िया..
जवाब देंहटाएं