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सोमवार, 30 नवंबर 2009
"वीराना जैसा अपना चमन हो नही सकता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
रविवार, 29 नवंबर 2009
"हमें संस्कार प्यारे हैं" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
शनिवार, 28 नवंबर 2009
"ईदुल-जुहा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
शुक्रवार, 27 नवंबर 2009
"मेरे देश के नेता! सचमुच महान हैं!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
रोटी है,
बेटी है,
बँगला है,
खेती है,
सभी जगह
घोटाले हैं,
कपड़े उजले हैं,
दिल काले हैं,
उनके भइया हैं,
इनके साले हैं,
जाल में फँस रहे,
कबूतर भोले-भाले हैं,
गुण से विहीन हैं
अवगुण की खान हैं
जेबों में रहते
इनके भगवान हैं
इनकी दुनिया का
नया विज्ञान है
दिन में इन्सान हैं
रात को शैतान हैं
न कोई धर्म है
न ही ईमान है
मुफ्त में करते
नही अहसान हैं
हर रात को बदलते
नये मेहमान है
मेरे देश के नेता
सचमुच महान हैं!
गुरुवार, 26 नवंबर 2009
"कोटि-कोटि नमन!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
बुधवार, 25 नवंबर 2009
"बद्-दुआएँ सर गयीं है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
मंगलवार, 24 नवंबर 2009
"दिखा कहीं श्रम-स्वेद नही" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
देश-वेश और जाति, धर्म का , मन में कुछ भी भेद नहीं।
भोग लिया जीवन सारा, अब मर जाने का खेद नहीं।।
सरदी की ठण्डक में ठिठुरा, गर्मी की लू झेली हैं,
भोग लिया जीवन सारा, अब मर जाने का खेद नहीं।।
सुख में कभी नही मुस्काया, दुख में कभी नही रोया,
आशा और निराशा का संगम है, एक परिभाषा है,
भोग लिया जीवन सारा, अब मर जाने का खेद नहीं।।
सोमवार, 23 नवंबर 2009
"तुकबन्दी हो ही गई" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
रविवार, 22 नवंबर 2009
"चाक दामन सी रही है जिन्दगी" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
-: एक मुक्तक :- गम में अपने जी रही है जिन्दगी। अश्क अपने पी रही है जिन्दगी।। दिल के सारे जख़्म अब तक हैं हरे, चाक दामन सी रही है जिन्दगी।। |
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"खटीमा में स्वाइन-फ्लू तथा बाघ" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
शनिवार, 21 नवंबर 2009
"नीड़ में ज़र तलाश करते हो!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
शुक्रवार, 20 नवंबर 2009
"अनुशासन, दूर-दृष्टि और पक्का-इरादा" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
इन्दिरा ने बलिदान दिया।
महायज्ञ की आहुति बनकर,
अपना जीवन दान दिया।।
गुरुवार, 19 नवंबर 2009
"जन्म-दिवस पर शत्-शत् नमन!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
दुर्गा की अवतार
मंगलवार, 17 नवंबर 2009
"आस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
प्रियतम जब तुम आओगे तो, संग बहारें लाओगे। स्नेहिल रस बरसाओगे और रंग फुहारें लाओगे।। तुमको पाकर मन के उपवन, बाग-बाग हो जायेंगे, वीराने गुलशन में फिर से, कली-सुमन मुस्कायेंगे, जीवनरूपी बगिया में तुम, ढंग निराले लाओगे। स्नेहिल रस बरसाओगे और रंग फुहारें लाओगे।। अमराई में कोयल फिर से, कुहुँक-कुहुँक कर गायेगी, मुर्झाई अमियों में फिर से, मस्त जवानी छायेगी, अमलतास के पेड़ों पर, पचरंगी फूल खिलाओगे। स्नेहिल रस बरसाओगे और रंग फुहारें लाओगे।। आशा है आकर तुम मेरे, कानों में रस घोलोगे, सदियों का तुम मौन तोड़कर, मीठे स्वर में बोलोगे, अपनी साँसो के सम्बल से, मुझको तुम सहलाओगे। स्नेहिल रस बरसाओगे और रंग फुहारें लाओगे।। |
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सोमवार, 16 नवंबर 2009
"देश का दूषित हुआ वातावरण" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
सभ्यता, शालीनता के गाँव में, खो गया जाने कहाँ है आचरण? कर्णधारों की कुटिलता देखकर, देश का दूषित हुआ वातावरण। सुर हुए गायब, मृदुल शुभगान में, गन्ध है अपमान की, सम्मान में, आब खोता जा रहा है आभरण। खो गया जाने कहाँ है आचरण? शब्द अपनी प्राञ्जलता खो रहा, ह्रास अपनी वर्तनी का हो रहा, रो रहा समृद्धशाली व्याकरण। खो गया जाने कहाँ है आचरण? लग रहे घट हैं भरे, पर रिक्त हैं, लूटने में राज को, सब लिप्त हैं, पंक से मैला हुआ सब आवरण। खो गया जाने कहाँ है आचरण? |
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रविवार, 15 नवंबर 2009
"वो तो कुत्ते की मौत मरता है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
जो परिन्दे के पर कतरता है। वो इबादत का ढोंग करता है।। जो कभी बन नही सका अपना, दम वही दोस्ती का भरता है। दीन-ईमान को जो छोड़ रहा, कब्र में पाँव खुद ही धरता है। पार उसका लगा सफीना है, जो नही ज़लज़लों से डरता है। इन्तहा जिसने जुल्म की की है, वो तो कुत्ते की मौत मरता है। |
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शनिवार, 14 नवंबर 2009
"बाल-दिवस" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
अपने जन्म-दिवस को तुमने बाल-दिवस का नाम दिया था।
फूलों की मुस्कानों से महके उपवन।
एक साल में एक बार ही बाल दिवस आता है।
मास नवम्बर नेहरू जी की याद दिलाता है।।
लाल-जवाहर के सीने पर सजा सुमन।
अभिनव भारत के निर्माता तुम्हें नमन।
गुरुवार, 12 नवंबर 2009
"दो मुक्तक" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
बुधवार, 11 नवंबर 2009
"सजा मौत की दे दो" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
भारत में रहकर हिन्दी से जिनको प्यार नही है। उनको इस धरती पर रहने का अधिकार नही है।। जितनी भी भाषा-बोली हैं, सब हमको हैं प्यारी। लेकिन देवनागरी भाषा पर, हम सब बलिहारी।। राज ठाकरे के गुर्गों ने, ये कैसा पथ अपनाया? वीर-शिवाजी की सूरत में काला दाग लगाया।। कारा में डालो "मनमोहन" इन ज़ालिम मक्कारों को। सजा मौत की दे दो, इन भारत-माँ के गद्दारों को।। |
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मंगलवार, 10 नवंबर 2009
"क्या तुम साथ निभाओगे?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
राह कठिन है, पथ दुर्गम है, क्या तुम साथ निभाओगे? पथरीली राहों पर चलते-चलते तुम थक जाओगे।। मेरे साथ नही मस्ती है, विपदाओं से कुश्ती है, आँधी और तूफानों से तुम निश्चित ही डर जाओगे। पथरीली राहों पर चलते-चलते तुम थक जाओगे।। तपन ग्रीष्म की, घन का गर्जन, बरसातों की बौछारें, जाड़े की सिहरन-कम्पन को देख-देख रुक जाओगे। पथरीली राहों पर चलते-चलते तुम थक जाओगे।। मैं उजड़ा-बिगड़ा गुलशन हूँ, तुम हो खिलता हुआ चमन, बाँह पकड़कर मरुथल की, तुम वीराना कहलाओगे। पथरीली राहों पर चलते-चलते तुम थक जाओगे।। तुम सुख में जीने वाले, मैं हूँ श्रम-साधक, मेहनतकश, महलों को तजकर, तिनकों के घर में क्या रह पाओगे। पथरीली राहों पर चलते-चलते तुम थक जाओगे।। मैं श्यामल पूरबवाला, तुम गोरे पश्चिमवाले हो, मेरे साथ-साथ चलकर, तुम उजला रूप गँवाओगे। पथरीली राहों पर चलते-चलते तुम थक जाओगे।। |
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सोमवार, 9 नवंबर 2009
"पुरानों को नमन और नयों को प्रणाम!!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
सभी में निहित है प्रीत।
आज
लिखे जा रहे हैं अगीत,
अतुकान्त
सुगीत, कुगीत
और नवगीत।
जी हाँ!
हम आ गये हैं
नयी सभ्यता में,
जीवन कट रहा है
व्यस्तता में।
सूर, कबीर, तुलसी की
नही थी कोई पूँछ,
मगर
आज अधिकांश ने
लगा ली है
छोटी या बड़ी
पूँछ या मूँछ।
क्योंकि इसी से है
उनकी पूछ
या पहचान,
लेकिन
पुरातन साहित्यकारों को तो
बना दिया था
उनके साहित्य ने ही महान।
परिपूर्ण थी
उनकी लेखनी
मर्यादाओं से,
मगर
आज तो लोगों को
सरोकार है
विविधताओं से।
लो हो गया काम,
पुरानों को नमन
और नयों को प्रणाम!!
शनिवार, 7 नवंबर 2009
"इश्क के काफिले नही होते" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
आप आकर मिले नहीं होते। तो शुरू सिलसिले नही होते।। घर में होती चहल-पहल कैसे, शाख पर घोंसले नहीं होते। तो शुरू सिलसिले नही होते।। गर न मिलती नदी समन्दर से, मौज़ के मरहले नही होते। तो शुरू सिलसिले नही होते।। सुख की बारिश अगर नही आती, गुल चमन में खिले नहीं होते।। तो शुरू सिलसिले नही होते।। दिल मे उल्फत अगर नही होती, प्यार के हौंसले नहीं होते।। तो शुरू सिलसिले नही होते।। हुस्न में गर कशिश नही होती, इश्क के काफिले नही होते। तो शुरू सिलसिले नही होते।। |
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शुक्रवार, 6 नवंबर 2009
"अनदेखे परमेश्वर से वो कैसे प्यार करेंगा?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
घर के बडे़-बुजुर्गों से जो प्यार नही कर सकता, अनदेखे परमेश्वर से वो कैसे प्यार करेगा? जो सैनिक काँधे पर खुद हथियार नही धर सकता, वह सीमा पर शत्रु का कैसे संहार करेगा? विद्या से विनम्रता आती, विनय पात्रता सिखलाती, भोजन की थाली पाकर जो उदर नही भर सकता, लालन-पालन वो कैसे पूरा परिवार करेगा? अनदेखे परमेश्वर से वो कैसे प्यार करेंगा? श्रेष्ठ वही है जो पढ़ता है, ज्ञान बाँटने से बढ़ता है, अभिमानी विद्वान भला कैसे उद्धार करेगा? अनदेखे परमेश्वर से वो कैसे प्यार करेंगा? धन पा जाना बहुत सुलभ है, सज्जन बनपाना दुर्लभ है, मूरख विद्या देवी की कैसे मनुहार करेगा? अनदेखे परमेश्वर से वो कैसे प्यार करेंगा? |
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गुरुवार, 5 नवंबर 2009
"गधों को मिठाई नही घास चाहिए" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
गधों को मिठाई नही घास चाहिए।।
गधों को मिठाई नही घास चाहिए।।
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"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
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