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बुधवार, 25 नवंबर 2009
"बद्-दुआएँ सर गयीं है" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत ही अनुपम प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंवासनाओं की डगर में साधनाएँ डर गयीं हैं।।
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी क्या गजब की बात कही आपने-आभार
बहुत खूब सीधा प्रहार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंस्वार्थ की आँधी ने तोड़े द्वार तोरण,
जवाब देंहटाएंप्रार्थनाओं के सफर मे बद्-दुआएँ सर गयीं है।
रचना अच्छी लगी। बधाई।
सच को व्याख्यायित करती सुन्दर रचना।
जवाब देंहटाएं------------------
क्या है कोई पहेली को बूझने वाला?
पढ़े-लिखे भी होते हैं अंधविश्वास का शिकार।
अत्यन्त सुंदर रचना! बहुत बहुत बधाई इस उम्दा रचना के लिए!
जवाब देंहटाएंवासनाओं की डगर में साधनाएँ डर गयीं हैं।।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव
बहुत खूब
कामनाओं के नगर में भावनाएँ मर गयीं हैं।
जवाब देंहटाएंवासनाओं की डगर में साधनाएँ डर गयीं हैं।
क्या बात है!!सच है आज भावनाओं और साधना की नितांत कमी हो गई है.
सभ्यता सोई हुई है, नग्नता जागी हुई,
जवाब देंहटाएंनौनिहालों ने हया और शर्म है त्यागी हुई,
बहुत सही लिखा आप ने शास्त्री जी, आप की कविता आज के माहोल पर बिलकुल उचित है. धन्यवाद
कितनी खूबसूरती से आपने जमाने के सच को उजागर किया ..एक प्रेरक कविता शब्द और विचार दोनों लाज़वाब वैसे भी शास्त्री जी आपकी रचनाओं के बारें क्या कहूँ..बेहतरीन..धन्यवाद..
जवाब देंहटाएंप्रार्थनाओं के सफर मे बद्-दुआएँ सर गयीं है।
जवाब देंहटाएंkya baat hai Sir ji.. bahut khub.. BAdhai ....!
shastri ji...
जवाब देंहटाएंkuch nahi hai kehne ke liye in chand lafzon ke...
"waah waah waah"
ishwar aapko lambi aayu de aur aap aise he hum sab ko sachayi se avgat karaate rahein....
aameen....
badhaayee...
मन्द है मनुहार की महकी समीरण,
जवाब देंहटाएंस्वार्थ की आँधी ने तोड़े द्वार तोरण,
प्रार्थनाओं के सफर मे बद्-दुआएँ सर गयीं है।
वासनाओं की डगर में साधनाएँ डर गयीं हैं।।
wah wah ATISUNDER.
शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंप्रेरणाओं की लहर में मान्यताएँ उड़ गयीं हैं।
वासनाओं की डगर में साधनाएँ डर गयीं हैं।।
वाह!! कितनी सामायिक और तीक्ष्ण अभिव्यक्ति... साधू!!!
शुष्क हैं सरिताएँ, नाले गन्दगी के बढ़ रहे,
जवाब देंहटाएंकैद में तम की पड़े, उजले-उजाले सड़ रहे हैं,
प्रेरणाओं की लहर में मान्यताएँ उड़ गयीं हैं।
वासनाओं की डगर में साधनाएँ डर गयीं हैं।।
ek bahut hi umda prastuti....aaj ke halat ko bayan kar diya.
bahut khoob sir!
जवाब देंहटाएंBhai ji,
जवाब देंहटाएंAtiuttam. Badhai!!
शुष्क हैं सरिताएँ, नाले गन्दगी के बढ़ रहे,
कैद में तम की पड़े, उजले-उजाले सड़ रहे हैं,
प्रेरणाओं की लहर में मान्यताएँ उड़ गयीं हैं।
वासनाओं की डगर में साधनाएँ डर गयीं हैं।।
सभ्यता सोई हुई है, नग्नता जागी हुई,
जवाब देंहटाएंनौनिहालों ने हया और शर्म है त्यागी हुई,
चेतनाओं के उदर में जल्पनाएँ भर गयीं हैं।
वासनाओं की डगर में साधनाएँ डर गयीं हैं
उम्दा रचना बहुत खूब