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shastri ji,
जवाब देंहटाएंati uttam baat kahi hai aapne....
bas ab toh desh ko jagne ki zarurat hai....
badhaayee....
बहुत खूब शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंबधाई !
दौर-ए-मँहगाई के ज़माने में,
जवाब देंहटाएंखीर में गुड़ तलाश करते हो!
ज़ाम दहशत के ढालने वालो,
पीड़ में सुर तलाश करते हो!
bahut hi achchi baat kahi aapne....
in panktiyon ne dil ko chhoo liya...
भीड़ में नर तलाश करते हो!
जवाब देंहटाएंकितना भी तलाश कर लें नही मिलेगा.
बहुत सुंदर रचना
बेहद रोचक और मार्मिक व्यंग्य है।
जवाब देंहटाएंबरसात में नहा रही हैं ऊंची मुण्डेरें
धरती के प्यासे होठ नयन देख रहा हूँ।
"दौर-ए-मँहगाई के ज़माने में,
जवाब देंहटाएंखीर में गुड़ तलाश करते हो!"
बहुत खूब.......... क्या बात कही है आपने !
१००% सत्य वचन !
दौर-ए-मँहगाई के ज़माने में,
जवाब देंहटाएंखीर में गुड़ तलाश करते हो!
शास्त्री जी बहुत ही उचित कविता कहते हैआपआज के जमाने के हिसाब से.बहुत अच्छी लगी गुड की तरह.
धन्यवाद
Hun un logo me hai jo dhut andere me bhi ummeed ki ek kiran talashte hai!
जवाब देंहटाएंदौर-ए-मँहगाई के ज़माने में,
जवाब देंहटाएंखीर में गुड़ तलाश करते हो!
bahut umda likha hai shastri ji , sabhi sher uttam, badhaai.
अच्छे कवियों को पढिये , उनसे परामर्श लीजिये आप भी अच्छा लिख सकेंगे !
जवाब देंहटाएंअभी मेरे लेखन में बहुत कमियाँ हैं, स्वीकारता हूँ।
जवाब देंहटाएंबेनामी का आभार!
जाति, क्षेत्र, साम्प्रदायिकता का नारा देकर
जवाब देंहटाएंअपनी कुर्सी तलाश करते हो.
सौ फीसदी सही बात कहा है आपने! इस उम्दा रचना के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंछल-फरेबी के हाट में जाकर,
जवाब देंहटाएंभीड़ में नर तलाश करते हो!
bahut sundar .