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शनिवार, 12 दिसंबर 2009
"उन्हें खाना नहीं आता हमें पीना नहीं आता" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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बहुत अच्छी लगी यह पुरानी रचना ....
जवाब देंहटाएंbahut khoob
जवाब देंहटाएंbahut khaas rachna
badhaai !
बहुत अच्छी लगी यह रचना.
जवाब देंहटाएंनहीं मिलती कभी भी रेल की हैं पटरियाँ दोनों,
जवाब देंहटाएंउन्हें खाना नहीं आता हमें पीना नहीं आता।
शानदार
SACH KI KAVITA H
जवाब देंहटाएंMUBARAK PURANI KAVITA KE MILNE PAR
HUM JAISO KO BHI ... PURANA KUCHH TO MILA
AAJ YUG MEIN SAB KO SAB NAYA CHAHIYE.
HUME PURANA JAYADA ACHCHHA LAGA
बहुत मगरूर हैं वो भी, बहुत मगरूर हैं हम भी,
जवाब देंहटाएंउन्हें पाना नहीं आता हमें खोना नहीं आता।
shandaar lines.. kya khuddari hai... wah!
खुदा का नूर हैं वो भी, नहीं बेनूर हैं हम भी,
उन्हें मरना नहीं आता, हमें जीना नहीं आता।
destructive interference ho gaya ye to...
मिल नहीं सकती कभी भी रेल की दो पटरियाँ,
उन्हें खाना नहीं आता हमें पीना नहीं आता।
bahut hi sundar panktiyan...
mujhe apni ek triveni aur sangeeta puri ji ka comment yaad aa gaya...
maine likha tha..
चलते रहे सीधी लाइन पर,
लिए मन में पुनर्मिलन की आस,
हम दोनों की ज्यामिति कमजोर थी...
sangeeta puri ji ne kaha...
दोनो की ज्यामिति कुछ कमजोर तो हैं .. पर पूरी नहीं .. समानांतर रेखाएं भी अनंत में जाकर मिलती है !!
shandaar lagi aapki ye purani rachna...
वाह वाह । बहुत खूब ।
जवाब देंहटाएंबहुत मगरूर हैं वो भी, बहुत मगरूर हैं हम भी,
उन्हें पाना नहीं आता हमें खोना नहीं आता।
आपके माथे से छलके जो पसीना भी कहीं
जवाब देंहटाएंआसमां हिलने लगे और कांप उठे ये ज़मीन
आपका तो ये पसीना खून से भी कीमती
और अपने खून की कीमत यहां कुछ भी नहीं
अपना तो खून पानी, जीना मरना बेमानी
वक्त की हर अदा है अपनी देखी-भाली
आपका क्या होगा जनाबे-आली...
जय हिंद...
उन्हें चलना नहीं आता हमें ढोना नहीं आता।।
जवाब देंहटाएंबस, इन्हीं पंक्तियों में एक समूचा जीवनदर्शन आपने कह डाला है...
जवाब देंहटाएंऔर छांटिये...
जवाब देंहटाएंबढ़िया रचना निकली..
bahut hi shandar rachna......aur dhundhiye.
जवाब देंहटाएंपुरानी रचना और नया टेम्पलेट दोनो ही जानदार हैं, बधाई, पुराना टे्म्पलेट खुलने मे ज्यादा समय लेता था ये नया वाला ठीक है,बधाई
जवाब देंहटाएं