मुस्कराते रहो, गीत गाते रहो, फूल बगिया में नूतन खिलाते रहो। जाने वाला ही है अब यह साल तो, प्रेम के दीप मन में जलाते रहो।। रंज इस साल के साथ कर दो विदा, मन की घाटी में गूँजे न ग़म की सदा। आने वाला है नव-वर्ष खुशियों भरा, कहने वाले पुरातन को हम अलविदा।। |
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रविवार, 20 दिसंबर 2009
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मुस्कराते रहो, गीत गाते रहो,
जवाब देंहटाएंफूल बगिया में नूतन खिलाते रहो।
जाने वाला ही है अब यह साल तो,
प्रेम के दीप मन में जलाते रहो।।
बहुत सुंदर पंक्तियाँ....
सुंदर कविता....
नये वर्ष पर बहुत सुंदर संदेश है
जवाब देंहटाएंकहने वाले पुरातन को हम अलविदा।।
जवाब देंहटाएंअलविदा कहना ही होगा
सुन्दर आशावाद
शानदार
जवाब देंहटाएंरंज इस साल के साथ कर दो विदा,
जवाब देंहटाएंमन की घाटी में गूँजे न ग़म की सदा।
बहुत बढ़िया बात कही है आपने शास्त्री जी!
शास्त्री जी बहुत सुंदर कविता, जाते हुये साल को अलविदा कहने का निरला तरीका.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत सुंदर मुक्तक।
जवाब देंहटाएंरंज इस साल के साथ कर दो विदा,
जवाब देंहटाएंमन की घाटी में गूँजे न ग़म की सदा।
आने वाला है नव-वर्ष खुशियों भरा,
कहने वाले पुरातन को हम अलविदा।।
वाह, काश ऐसा ही हो !
waah waah.........bahut hi zabardast andaz mein vida kar rahe hain saal ko.
जवाब देंहटाएंहमेशा की तरह एक बार फिर सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंवाह शाश्त्री जी, बहुत लाजवाब बात कही आपने.
जवाब देंहटाएंरामराम.
बहुत सुंदर कविता
जवाब देंहटाएंbahut sunder muktak...
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