ग़म की रखवाली करते-करते ही उम्र तमाम हुई। पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।। सुख आये थे संग में रहने. डाँट-डपट कर भगा दिया, जाने अनजाने में हमने, घर में ताला लगा लिया, पवन-बसन्ती दरवाजों में, आने में नाकाम हुई। पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।। मन के सुमन चहकने में है, अभी बहुत है देर पड़ी, गुलशन महकाने को कलियाँ, कोसों-मीलों दूर खड़ीं, हठधर्मी के कारण सारी आशाएँ हलकान हुई। पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।। चाल-ढाल है वही पुरानी, हम तो उसी हाल में हैं, जैसे गये साल में थे, वैसे ही नये साल में हैं, गुमनामी के अंधियारों में, खुशहाली परवान हुई। पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।। |
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सोमवार, 28 दिसंबर 2009
पहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।।
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रचना पढ़कर मज़ा आ गया .
जवाब देंहटाएंचाल-ढाल है वही पुरानी,
जवाब देंहटाएंहम तो उसी हाल में हैं,
जैसे गये साल में थे,
वैसे ही नये साल में हैं,
आम आदमी पर कोई फर्क नही पड़ता , साल नया हो या पुराना
bahut baddhiya hamesha ki tarah
जवाब देंहटाएं"चाल-ढाल है वही पुरानी,
जवाब देंहटाएंहम तो उसी हाल में हैं,
जैसे गये साल में थे,
वैसे ही नये साल में हैं,"
बहुत अच्छी पंक्तियाँ हैं , सच आम आदमी को कोई फर्क नहीं पड़ता !!
गुमनामी के अंधियारों में, खुशहाली परवान हुई।
जवाब देंहटाएंपहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।।
बहुत खूब, सुन्दर रचना शास्त्री जी !
हठधर्मी के कारण सारी आशाएँ हलकान हुई।
जवाब देंहटाएंपहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।।
हठ्धर्मी और नादानी ही तो है जिसके कारण हम ताउम्र परेशान होते रहते हैं.
बहुत सुंदर लगी आप की यह रचना, हम भि मोला मस्त है, नया पुराना सब एक समान है, बस केलेंडर बदल जाता है
जवाब देंहटाएंमन के सुमन चहकने में है,
जवाब देंहटाएंअभी बहुत है देर पड़ी,
गुलशन महकाने को कलियाँ,
कोसों-मीलों दूर खड़ीं,
sundar bhavon se saji behad khubsurat rachana..bahut badhiya lagi naye saal ke aagman me yah sundar rachana..badhai
इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंसुन्दर - हम भी निरर्थक की रखवाली करते जिन्दगी गुजारे गये हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना। बहुत-बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंआपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
बहुत सुंदर पंक्तियों के साथ ...सुंदर रचना....
जवाब देंहटाएंपवन-बसन्ती दरवाजों में, आने में नाकाम हुई।
जवाब देंहटाएंपहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।।
बहुत सुंदर.
गुमनामी के अंधियारों में, खुशहाली परवान हुई।
जवाब देंहटाएंपहरेदारी करते-करते सुबह हुई और शाम हई।।
बहुत बढिया लगी ये रचना....
आभार्!
बहुत उम्दा!!
जवाब देंहटाएंयह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
बहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंआने वाला साल मंगलमय हो।
bahut achhi rachna hai sir
जवाब देंहटाएंaapko nav-varsh ki shubhkaamnaaye
बहुत खूब मयंक जी आप कविता की इन लाय्नो ने ही सब कुछ बयाँ कर दिया ,,
जवाब देंहटाएंचाल-ढाल है वही पुरानी,
हम तो उसी हाल में हैं,
जैसे गये साल में थे,
वैसे ही नये साल में हैं,
नव वर्ष पर इतनी बेहतरीन कविता के लिए आप को बधाई और नव वर्ष की अग्रिम हार्दिक शुभ कामनाये
सादर
प्रवीण पथिक
997196984
bahut hi sundar aur bhabhini kavita.
जवाब देंहटाएंnavvarsh ki agrim badhayi.
चाल-ढाल है वही पुरानी,
जवाब देंहटाएंहम तो उसी हाल में हैं,
जैसे गये साल में थे,
वैसे ही नये साल में हैं,
hmm.. purn satya
आप और आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द के हजारवें विशेषांक की ओर में" रविवार 08 एप्रिल 2018 को लिंक की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंवाह! खूब!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंनमन आप की लेखनी को