पूछते हैं वो दर-ओ-दीवार से,
हो गया क्यों बे-रहम इन्सान है?
जुल्म की हम छाँव में हैं जी रहे,
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यही तो है आज की कडवी सच्चाई,
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना के लिए लीजिये बधाई |
पूछते हैं वो दर-ओ-दीवार से,
जवाब देंहटाएंआदमी महरूम क्यों है प्यार से?
क्यों दिलों में भाव गन्दे आ गये?
मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये।।
ek katu satya ko shabd de diye........sach jeena kitna muhal ho gaya hai.
पूछते हैं वो दर-ओ-दीवार से,
जवाब देंहटाएंआदमी महरूम क्यों है प्यार से?
क्यों दिलों में भाव गन्दे आ गये?
मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये।।
सच मे आज हम संवेदनहीन होते जा रहे हैं बहुत सुन्दर रचना है बधाई
हो गया क्यों बे-रहम इन्सान है?
जवाब देंहटाएंहो गया नीलाम क्यों ईमान है?
हबस के बहशी कुबन्दे आ गये।
मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये।।
समसामयिक रचना...सच्चाई को बयां करती हुई .....बहुत अच्छी लगी
आज के हालात को बयान करती सुन्दर कविता के लिए बधाई !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.
हो गया क्यों बे-रहम इन्सान है?
जवाब देंहटाएंहो गया नीलाम क्यों ईमान है?
हबस के बहशी पुलिन्दे आ गये।
मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये।।
बहुत सुन्दर, लाजबाब शास्त्री जी !
हो गया क्यों बे-रहम इन्सान है?
जवाब देंहटाएंहो गया नीलाम क्यों ईमान है?
हबस के बहशी पुलिन्दे आ गये।
मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये।।
रचना अच्छी लगी।
बहुत सुन्दर रचना है।बधाइ।
जवाब देंहटाएंजुल्म की हम छाँव में हैं जी रहे,
जहर को अमृत समझकर पी रहे,
हमको भी कुछ दाँव-फन्दे आ गये।
मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये।।
पूछते हैं वो दर-ओ-दीवार से,
जवाब देंहटाएंआदमी महरूम क्यों है प्यार से?
क्यों दिलों में भाव गन्दे आ गये?
मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये।।
sahi baat kahi hai....badhiya rachna.
Bahut khoob likha hai apne. Badhai!!
जवाब देंहटाएंसटीक रचना. अकाट्य सत्य.
जवाब देंहटाएंजंगलों में जब दरिन्दे आ गये।
जवाब देंहटाएंमेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये।।
बहुत सुन्दर रचना, शास्त्री जी. धन्यवाद!
आपको नए साल (हिजरी 1431) की मुबारकबाद !!!
जवाब देंहटाएंकडवी सच्चाई के साथ ... बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति..........
जवाब देंहटाएंआज का सच है आप की इस कविता मै
जवाब देंहटाएंवाह .. बहुत सुंदर गीत !!
जवाब देंहटाएंशास्त्रीजी,
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना ! साधुवाद !!
'जंगलों में जब दरिन्दे आ गये।
मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये।।'
क्या जंगल, क्या शहर--दरिन्दे तो सारी धरती पर पांव पसार चुके है ! लेकिन इस रचना में आपका इशारा समझ रहा हूँ !
सदर--आ.
जंगल में आशियाना का जब ख़तरा हुआ तो बेचारे फिर से क़ैद में ही रहना पसंद किए..इंसान और इंसान के चारो ओर के वातावरण पर प्रकाश डालती आज के परिवेश की व्याख्या करती बहुत बढ़िया गीत..धन्यवाद शास्त्री जी
जवाब देंहटाएंजंगलों के दरिंदो से भाग कर परिंदे आपके घर में आ गए ...
जवाब देंहटाएंसही सुरक्षित ठिकाना पा गए ...!!
पूछते हैं वो दर-ओ-दीवार से,
जवाब देंहटाएंआदमी महरूम क्यों है प्यार से?
क्यों दिलों में भाव गन्दे आ गये?
मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये।।
बहुत ही गहराई लिये हुये भावों के साथ बेहतरीन प्रस्तुति ।
शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंक्या सधी हुई रचना है... विचारों को झकझोरती हुई
पूछते हैं वो दर-ओ-दीवार से,
आदमी महरूम क्यों है प्यार से?
क्यों दिलों में भाव गन्दे आ गये?
मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये।।
वाह!! वह मनुष्य ही था जिसने एक परिंदे की वेदना से मुखरित हो पहला महाकाव्य लिख डाला. आज इन्ही परिंदों का उदाहरण देकर आपने मनुष्य-ह्रदय की संवेदनाओं से मुखातिब हैं सुन्दर !!
हो गया क्यों बे-रहम इन्सान है?
जवाब देंहटाएंहो गया नीलाम क्यों ईमान है?
हबस के बहशी पुलिन्दे आ गये।
मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये ....
जाने कब हम इंसान . .......... कब पत्थर टूटेंगे ...........
नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शुक्रवार (21-05-2021 ) को 'मेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये' (चर्चा अंक 4072 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
वाह।
जवाब देंहटाएंजंगलों में जब दरिन्दे आ गये।
जवाब देंहटाएंमेरे घर उड़कर परिन्दे आ गये।।
वाह ! बड़ी ही मर्मस्पर्शी पंक्तियों से कविता का प्रारंभ।
पूछते हैं वो दर-ओ-दीवार से,
आदमी महरूम क्यों है प्यार से?
क्यों दिलों में भाव गन्दे आ गये?
सच ! परिंदे बोल पाते तो यही पूछते। मार्मिक प्रश्न। सादर प्रणाम।