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मंगलवार, 8 दिसंबर 2009
"सभ्यता का फट गया क्यों आवरण?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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सही है , गलत आचरण से वातावरण दूषित होता है
जवाब देंहटाएंअस्त पूरब में हुआ है क्यों उजाला सीख का,
जवाब देंहटाएंआज क्यों भाने लगा हमको निवाला भीख का,
सभ्यता का फट गया क्यों आवरण?
देश का दूषित हुआ वातावरण।।
सटीक !
लूट, दंगा, दगाबाजी की कयामत पल रही,
जवाब देंहटाएंजमाखोरी, जालसाजी की सियासत चल रही,
जुल्म से पोषित हुआ पर्यावरण।
देश का दूषित हुआ वातावरण।।
हर एक पंक्तियाँ सत्य बयान करती है! आपने सही कहा है कि वातावरण दूषित हो रहा है सिर्फ़ ग़लत आचरण के वजह से! बहुत अच्छी लगी ये रचना!
पाठ जिसने अमन का जग को पढ़ाया,
जवाब देंहटाएंधर्म की निरपेक्षता का पथ दिखाया,
क्यों नजर आता नही वो व्याकरण।
इस कविता में दूषित आचरण के दर्द को बड़ी कुशलता से उतारा गया है। संवेदनशील रचना। बधाई।
* अच्छी कविता !
जवाब देंहटाएं*मैथिलीशरण गुप्त जी की पंक्तियों को याद कर रहा हूँ-
हम कौन थे क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी आओ विचारें आज मिलकर ये समस्यायें सभी।
प्रेरित करने वाली रचना । बहुत ही सुन्दर रचना ।
जवाब देंहटाएंअस्त पूरब में हुआ है क्यों उजाला सीख का,
जवाब देंहटाएंआज क्यों भाने लगा हमको निवाला भीख का,
shandaar rachna...
bahut dino se aisa kuch padhne ki ummeed thi.. aaj aapne khwahish puri ki...
mayank ji jai ho aapki !
जवाब देंहटाएंwaah !
waah !
bemisal...........kamaaaaal..
अस्त पूरब में हुआ है क्यों उजाला सीख का,
आज क्यों भाने लगा हमको निवाला भीख का,
सभ्यता का फट गया क्यों आवरण?
देश का दूषित हुआ वातावरण।।
geet me aapnhe darpan rakh diya hai...
aap dhnya hain.....
वाह शास्त्री जी, देश की वर्तमान परिस्थितियों पर सोच जगाती कविता...एक सार्थक चिंतन को कुरेदती पंक्तियाँ
जवाब देंहटाएंअस्त पूरब में हुआ है क्यों उजाला सीख का,
आज क्यों भाने लगा हमको निवाला भीख का,
अच्छी और सच्ची रचना।
जवाब देंहटाएंअस्त पूरब में हुआ है क्यों उजाला सीख का,
जवाब देंहटाएंआज क्यों भाने लगा हमको निवाला भीख का,
सभ्यता का फट गया क्यों आवरण?
देश का दूषित हुआ वातावरण।।
bilkul sahi baat kahi ...............pata nhi kab samajh aayegi?
bahut bahut bahut hi sahi kaha aapne.....sandesh deti sundar sarthak rachna....waah !!!aabhar....
जवाब देंहटाएंमयंक जी, आपने पर्यावरण के साथ-साथ भीतर के प्रदूषण को रेखांकित किया है . साधुवाद .
जवाब देंहटाएंबहुत ही उम्दा और सटीक रचना!
जवाब देंहटाएंअस्त पूरब में हुआ है क्यों उजाला सीख का,
जवाब देंहटाएंआज क्यों भाने लगा हमको निवाला भीख का,
सभ्यता का फट गया क्यों आवरण?
देश का दूषित हुआ वातावरण।।---अच्छी और गहन रचना।
तब से आज तक सब वही वैसा ही।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना मान्यवर।
जवाब देंहटाएं"सभ्यता का फट गया क्यों आवरण?"
जवाब देंहटाएंअपनी रचना के माध्यम से इस ज्वलंत प्रश्न को उठाने के लिए आपको हार्दिक नमन 🙏
बहुत सटीक रचना है देश में सभ्यता का आवरण फटना तो पहले से शुरू हो गया था पर अब तो चिथड़े बिखर रहें हैं सभ्यता के ।
जवाब देंहटाएंसामायिक कहूं या लम्बे काल का सत्य विवरण।
अप्रतिम सृजन।
कल से आज तक की सच्चाई को उजागर करती उत्कृष्ट रचना ।
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा रविवार (13-06-2021 ) को 'मिट्टी की भीनी खुशबू आई' (चर्चा अंक 4094) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
जवाब देंहटाएंपाठ जिसने अमन का जग को पढ़ाया,
धर्म की निरपेक्षता का पथ दिखाया,
क्यों नजर आता नही वो व्याकरण।
देश का दूषित हुआ वातावरण।।
उम्दा रचना ।
खो गया जाने कहाँ है आचरण?
जवाब देंहटाएंदेश का दूषित हुआ वातावरण।।
लूट, दंगा, दगाबाजी की कयामत पल रही,
जमाखोरी, जालसाजी की सियासत चल रही,
जुल्म से पोषित हुआ पर्यावरण।
देश का दूषित हुआ वातावरण।।
वाकई माननीय
सादर नमन।।