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बुधवार, 16 दिसंबर 2009
"माता मुझको भी तो अपनी दुनिया में आने दो!" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
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bahut hi samyik rachna............jagriti isi prakar aati hai ........bas prayas karte rahna chahiye........abhi is post se pahle kumarendra ji ki post bhi isi se related hai wo padhi..........ajab ittefaq raha dono hi post ek hi vishay par.
जवाब देंहटाएंमाता मुझको भी तो अपना
जवाब देंहटाएंजन-जीवन पनपाने दो!
" बेहद भावुक करती रचना, मन को छु गयी, एक बेटी का दर्द जेसे आँखों में तैर गया..."
regards
मन को छू गये भाव।
जवाब देंहटाएं--------
छोटी सी गल्ती जो बडे़-बडे़ ब्लॉगर करते हैं।
क्या अंतरिक्ष में झण्डे गाड़ेगा इसरो का यह मिशन?
एक अजन्मी बच्ची कि भावनाएं कह डालीं आपने..मर्मस्पर्शी कविता.
जवाब देंहटाएंबेटे दारुण दुख देते हैं
जवाब देंहटाएंफिर भी इतने प्यारे क्यों?
सुख देने वाली बेटी के
गर्दिश में हैं तारे क्यों?
माता मुझको भी तो अपना
सा अस्तित्व दिखाने दो!
माता मुझको भी तो
अपनी दुनिया में आने दो!
वाह मजा अ गया पढ़कर शास्त्री जी, बहुत खूब !
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना लिये हुये अनुपम प्रस्तुति, आभार ।
जवाब देंहटाएंbehad behatrin shabdo se likhi lajawaab rachna
जवाब देंहटाएंमाता मुझको भी तो
जवाब देंहटाएंअपनी दुनिया में आने दो!
वाकई अजन्मी के पुकार को स्वर दिया है आपने खूबसूरती से
अति सुन्दर.
जवाब देंहटाएंमाता मुझको भी तो,
जवाब देंहटाएंअपनी दुनिया में आने दो.
सीता-सावित्री बन करके,
जग में नाम कमाने दो.
बहुत ही भावपूर्ण सुन्दर रचना आभार
बहुत ही भावुक कविता .....
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना, बधाई स्वीकारें।
जवाब देंहटाएंलाज़वाब प्रस्तुति शास्त्री जी ..आज के समाज का एक वो रूप जो भ्रूणहत्या में लिप्त है उनके लिए एक करूण पुकार...जाग जाओ ..बेटियाँ कही से भी बेटों से कम नही होती...बहुत बढ़िया गीत..धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर शब्दों के साथ बेहतरीन कविता....
जवाब देंहटाएंjai ho !
जवाब देंहटाएंbahut hi kamaal ki rachnaa !
सुन्दर और सामयिक रचना!
जवाब देंहटाएंबेटों की चाहत में मैया!
जवाब देंहटाएंक्यों बेटी को मार रही हो?
नारी होकर भी हे मैया!
नारी को दुत्कार रही हो,
माता मुझको भी तो अपना
जन-जीवन पनपाने दो!
माता मुझको भी तो
अपनी दुनिया में आने दो!
bahut khub!!!
जिस घर में बिटिया का सम्मान न हो, वो घर घर नहीं भूतों के डेरे होते हैं...
जवाब देंहटाएंजय हिंद...
बहुत सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंरामराम.