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शास्त्री जी,अब तो सच मे धूप बहुत अच्छी लगती है.सर्दी जो इतनी है...बहुत बढ़िया रचना है..बधाई।
जवाब देंहटाएंरोज दादा जी जलाते हैं अलाव,
गर्म पानी से हमेशा न्हायिए।
बैठकर के धूप में मस्ताइए।।
रात लम्वी, दिन हुए छोटे बहुत,
जवाब देंहटाएंअब रजाई तानकर सो जाइए।
बहुत-बहुत धन्यवाद
आपको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं।
सर्दी आने का एहसास बड़े ही खूबसूरत ढंग से पिरोया है आपने बर्फबरी के नज़ारे के लिए तो शहर से बाहर जाना होगा वैसे सर्दी में इसका भी अपना मज़ा है..बढ़िया रचना..बधाई!!!
जवाब देंहटाएंआप ने सर्दी के बारे बहुत सुंदर लिखा है,
जवाब देंहटाएंखूब खाओ सब हजम हो जाएगा,
शकरकन्दी भूनकर के खाइए।
बैठकर के धूप में मस्ताइए।।
लेकिन शक्कर कंदी कहां से लाये???
धन्यवाद
खूब खाओ सब हजम हो जाएगा,
जवाब देंहटाएंशकरकन्दी भूनकर के खाइए।
बैठकर के धूप में मस्ताइए।
वाह! बहुत सुंदर कविता...
सर्दी का मजा है इस कव्वाली में!!
जवाब देंहटाएंयह अत्यंत हर्ष का विषय है कि आप हिंदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं।
हिन्दी के प्रसार एवं प्रचार में आपका योगदान सराहनीय है.
मेरी शुभकामनाएँ आपके साथ हैं.
नववर्ष में संकल्प लें कि आप नए लोगों को जोड़ेंगे एवं पुरानों को प्रोत्साहित करेंगे - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
निवेदन है कि नए लोगों को जोड़ें एवं पुरानों को प्रोत्साहित करें - यही हिंदी की सच्ची सेवा है।
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाएँ और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
आपका साधुवाद!!
नववर्ष की अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
बहुत अच्छी कविता।
जवाब देंहटाएंआने वाला साल मंगलमय हो।
काश कि ऐसा हो सके.
जवाब देंहटाएंरात लम्वी, दिन हुए छोटे बहुत,
जवाब देंहटाएंअब रजाई तानकर सो जाइए।
बैठकर के धूप में मस्ताइए।
और रहा भी क्या है करने को :)
बैठकर के धूप में मस्ताइए
जवाब देंहटाएंहमसे इस क़व्वाली को गवाइए
और फिर अलमस्त ही हो जाइए
हा हा शास्त्री जी ठंड का मज़ा दे गई आपकी ये क़व्वाली ।
मयंक जी कैसे सुस्तायें महमान बहुत आये हुये हैं आज बडी मुश्किल से कुछ वक्त निकाला है कव्वाली बहुत पसंद आयी धन्यवाद्
जवाब देंहटाएंdhub me sustate hue, aapki khubsurat kavita ka anand le raha hoon.............!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर