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शनिवार, 19 दिसंबर 2009
"सुखी जीवन का मन्त्र" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
तोते का जीवन
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फाके मस्ती में भी
रहता था परिवार के संग
हमेशा ही लड़ता था
मेहनत की जंग
उड़ता था
ऊँची-ऊँची उड़ान
कभी नही होती थी
थकान
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जाता था
कभी रेगिस्तानी रेत में
आता था
कभी धान के खेत में
चखता था
कभी खट्टे मीठे आम
यही था मेरा
रोजमर्रा का काम
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एक दिन मैं
बहेलिए को भा गया
लालचवश्
उसके जाल मे आ गया
उसने मुझे बेच दिया
एक धनी साहुकार को
अब मैं तरसता था
परिवार के प्यार को
चाँदी का घर था
सोने का आसन था
बिना श्रम के
बढ़िया भोजन था
खाने को
दुर्लभ व्यञ्जन थे
रुचिकर पकवान थे
लेकिन
आजादी न थी
सभी मुझे
करते थे प्यार
हमेशा करते थे
मेरी मनुहार
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अगर कुछ नही था
तो वह था
अपनों का निश्छल प्यार
सुख का जीवन भी
बन गया था भार
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अब में हो गया हूँ
कृश्-काय
दुर्बल
बहुत ही असहाय
देता हूँ
यह सन्देश
यही है मेरा
अन्तिम उपदेश
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कभी भी नही होना
परतन्त्र!
यही है सुखी जीवन का
मन्त्र!
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कभी भी नही होना
जवाब देंहटाएंपरतन्त्र!
यही है सुखी जीवन का
मन्त्र!
सत्य बात.... बहुत अच्छी लगी यह कविता....
इस मंत्र के लिए हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएं------------------
जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
कोमा में पडी़ बलात्कार पीडिता को चाहिए मृत्यु का अधिकार।
कभी भी नही होना
जवाब देंहटाएंपरतन्त्र!
यही है सुखी जीवन का
मन्त्र!
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वाह क्या बेहतरीन सुखी जीवन का मंत्र दिया
सभी के सुखी जीवन की कामना का शुक्रिया
यही है जीवन का सार.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री जी.
कभी भी नही होना
जवाब देंहटाएंपरतन्त्र!
यही है सुखी जीवन का
मन्त्र!
paradheen sapnehun sukh nahin...........bilkul sahi kaha..........bahut hi sundar dhang se chitrit kiya hai.
मंत्र अच्छा है ।
जवाब देंहटाएंbahut hi behtar rachna vhai.Badhai!!
जवाब देंहटाएंअगर कुछ नही था
जवाब देंहटाएंतो वह था
अपनों का निश्छल प्यार
सुख का जीवन भी
बन गया था भार
कविता के माध्यम से सुन्दर सन्देश !
पराधीन सपनेहु सुख नाही ....!!
जवाब देंहटाएंपराधीन होने में कभी भी सुख नहीं मिलता. सत्य वचन.
जवाब देंहटाएंकभी भी नही होना
जवाब देंहटाएंपरतन्त्र!
वाकई इससे बडा दुख तो है नही
आप ने कविता मे बहुत सुंदर बात कह दी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंअपने अनुभव से सच्चा
जवाब देंहटाएंमंत्र दिया आपने.
- सुलभ
शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंकभी भी नही होना परतन्त्र!
यही है सुखी जीवन का मन्त्र!
सत्य वचन....वैसे भी कहते हैं "पराधीन सपनेहु सुख नाहि!!"
बहुत सुन्दर, शास्त्री जी.
जवाब देंहटाएंसुंदर संदेश देती रचना ।
जवाब देंहटाएंकभी भी नही होना
जवाब देंहटाएंपरतन्त्र!
यही है सुखी जीवन का
मन्त्र!
- हिन्दुस्तान स्वतंत्र हो कर भी सुखी जीवन का मन्त्र नहीं सीख पाया.अब धीरे धीरे आर्थिक परतंत्रता की ओर अग्रसर हो रहा है.
कभी भी नही होना
जवाब देंहटाएंपरतन्त्र!
यही है सुखी जीवन का
मन्त्र!...
इस माध्यम से आपने जीवन मंत्र दे दिया ..... सुदार रचना है शास्त्री जी .......
पिंजरा, कहीं तोते को मनुष्य की नकल की सजा तो नहीं.
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (20-05-2021 ) को 'लड़ते-लड़ते कभी न थकेगी दुनिया' (चर्चा अंक 4071) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
अप्रतिम। यह मंत्र सबको अपनाना चाहिए।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएं'कभी भी नही होना परतन्त्र
जवाब देंहटाएंयही है सुखी जीवन का मंत्र'
आपके अनुभव से मिला यह मंत्र जीवन में आत्म सैट करना चाहिये। बहुत सुन्दर रचना।
बहुत सुंदर अग्रज
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर अग्रज
जवाब देंहटाएंसादर