"उच्चारण" 1996 से समाचारपत्र पंजीयक, भारत सरकार नई-दिल्ली द्वारा पंजीकृत है। यहाँ प्रकाशित किसी भी सामग्री को ब्लॉग स्वामी की अनुमति के बिना किसी भी रूप में प्रयोग करना© कॉपीराइट एक्ट का उलंघन माना जायेगा। मित्रों! आपको जानकर हर्ष होगा कि आप सभी काव्यमनीषियों के लिए छन्दविधा को सीखने और सिखाने के लिए हमने सृजन मंच ऑनलाइन का एक छोटा सा प्रयास किया है। कृपया इस मंच में योगदान करने के लिएRoopchandrashastri@gmail.com पर मेल भेज कर कृतार्थ करें। रूप में आमन्त्रित कर दिया जायेगा। सादर...! और हाँ..एक खुशखबरी और है...आप सबके लिए “आपका ब्लॉग” तैयार है। यहाँ आप अपनी किसी भी विधा की कृति (जैसे- अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कर सकते हैं। बस आपको मुझे मेरे ई-मेल roopchandrashastri@gmail.com पर एक मेल करना होगा। मैं आपको “आपका ब्लॉग” पर लेखक के रूप में आमन्त्रित कर दूँगा। आप मेल स्वीकार कीजिए और अपनी अकविता, संस्मरण, मुक्तक, छन्दबद्धरचना, गीत, ग़ज़ल, शालीनचित्र, यात्रासंस्मरण आदि प्रकाशित कीजिए। |
Linkbar
फ़ॉलोअर
शनिवार, 19 दिसंबर 2009
"सुखी जीवन का मन्त्र" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मयंक")
तोते का जीवन
---------------------------
फाके मस्ती में भी
रहता था परिवार के संग
हमेशा ही लड़ता था
मेहनत की जंग
उड़ता था
ऊँची-ऊँची उड़ान
कभी नही होती थी
थकान
----------------------------
जाता था
कभी रेगिस्तानी रेत में
आता था
कभी धान के खेत में
चखता था
कभी खट्टे मीठे आम
यही था मेरा
रोजमर्रा का काम
----------------------------
एक दिन मैं
बहेलिए को भा गया
लालचवश्
उसके जाल मे आ गया
उसने मुझे बेच दिया
एक धनी साहुकार को
अब मैं तरसता था
परिवार के प्यार को
चाँदी का घर था
सोने का आसन था
बिना श्रम के
बढ़िया भोजन था
खाने को
दुर्लभ व्यञ्जन थे
रुचिकर पकवान थे
लेकिन
आजादी न थी
सभी मुझे
करते थे प्यार
हमेशा करते थे
मेरी मनुहार
-----------------------------
अगर कुछ नही था
तो वह था
अपनों का निश्छल प्यार
सुख का जीवन भी
बन गया था भार
------------------------------
अब में हो गया हूँ
कृश्-काय
दुर्बल
बहुत ही असहाय
देता हूँ
यह सन्देश
यही है मेरा
अन्तिम उपदेश
------------------------------
कभी भी नही होना
परतन्त्र!
यही है सुखी जीवन का
मन्त्र!
-------------------------------
लोकप्रिय पोस्ट
-
दोहा और रोला और कुण्डलिया दोहा दोहा , मात्रिक अर्द्धसम छन्द है। दोहे के चार चरण होते हैं। इसके विषम चरणों (प्रथम तथा तृतीय) मे...
-
लगभग 24 वर्ष पूर्व मैंने एक स्वागत गीत लिखा था। इसकी लोक-प्रियता का आभास मुझे तब हुआ, जब खटीमा ही नही इसके समीपवर्ती क्षेत्र के विद्यालयों म...
-
नये साल की नयी सुबह में, कोयल आयी है घर में। कुहू-कुहू गाने वालों के, चीत्कार पसरा सुर में।। निर्लज-हठी, कुटिल-कौओं ने,...
-
समास दो अथवा दो से अधिक शब्दों से मिलकर बने हुए नए सार्थक शब्द को कहा जाता है। दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि ...
-
आज मेरे छोटे से शहर में एक बड़े नेता जी पधार रहे हैं। उनके चमचे जोर-शोर से प्रचार करने में जुटे हैं। रिक्शों व जीपों में लाउडस्पीकरों से उद्घ...
-
इन्साफ की डगर पर , नेता नही चलेंगे। होगा जहाँ मुनाफा , उस ओर जा मिलेंगे।। दिल में घुसा हुआ है , दल-दल दलों का जमघट। ...
-
आसमान में उमड़-घुमड़ कर छाये बादल। श्वेत -श्याम से नजर आ रहे मेघों के दल। कही छाँव है कहीं घूप है, इन्द्रधनुष कितना अनूप है, मनभावन ...
-
"चौपाई लिखिए" बहुत समय से चौपाई के विषय में कुछ लिखने की सोच रहा था! आज प्रस्तुत है मेरा यह छोटा सा आलेख। यहाँ ...
-
मित्रों! आइए प्रत्यय और उपसर्ग के बारे में कुछ जानें। प्रत्यय= प्रति (साथ में पर बाद में)+ अय (चलनेवाला) शब्द का अर्थ है , पीछे चलन...
-
“ हिन्दी में रेफ लगाने की विधि ” अक्सर देखा जाता है कि अधिकांश व्यक्ति आधा "र" का प्रयोग करने में बहुत त्र...
कभी भी नही होना
जवाब देंहटाएंपरतन्त्र!
यही है सुखी जीवन का
मन्त्र!
सत्य बात.... बहुत अच्छी लगी यह कविता....
इस मंत्र के लिए हार्दिक आभार।
जवाब देंहटाएं------------------
जिसपर हमको है नाज़, उसका जन्मदिवस है आज।
कोमा में पडी़ बलात्कार पीडिता को चाहिए मृत्यु का अधिकार।
कभी भी नही होना
जवाब देंहटाएंपरतन्त्र!
यही है सुखी जीवन का
मन्त्र!
_________________________________
वाह क्या बेहतरीन सुखी जीवन का मंत्र दिया
सभी के सुखी जीवन की कामना का शुक्रिया
यही है जीवन का सार.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री जी.
कभी भी नही होना
जवाब देंहटाएंपरतन्त्र!
यही है सुखी जीवन का
मन्त्र!
paradheen sapnehun sukh nahin...........bilkul sahi kaha..........bahut hi sundar dhang se chitrit kiya hai.
मंत्र अच्छा है ।
जवाब देंहटाएंbahut hi behtar rachna vhai.Badhai!!
जवाब देंहटाएंअगर कुछ नही था
जवाब देंहटाएंतो वह था
अपनों का निश्छल प्यार
सुख का जीवन भी
बन गया था भार
कविता के माध्यम से सुन्दर सन्देश !
पराधीन सपनेहु सुख नाही ....!!
जवाब देंहटाएंपराधीन होने में कभी भी सुख नहीं मिलता. सत्य वचन.
जवाब देंहटाएंकभी भी नही होना
जवाब देंहटाएंपरतन्त्र!
वाकई इससे बडा दुख तो है नही
आप ने कविता मे बहुत सुंदर बात कह दी.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
बहुत अच्छी रचना।
जवाब देंहटाएंअपने अनुभव से सच्चा
जवाब देंहटाएंमंत्र दिया आपने.
- सुलभ
शास्त्री जी,
जवाब देंहटाएंकभी भी नही होना परतन्त्र!
यही है सुखी जीवन का मन्त्र!
सत्य वचन....वैसे भी कहते हैं "पराधीन सपनेहु सुख नाहि!!"
बहुत सुन्दर, शास्त्री जी.
जवाब देंहटाएंसुंदर संदेश देती रचना ।
जवाब देंहटाएंकभी भी नही होना
जवाब देंहटाएंपरतन्त्र!
यही है सुखी जीवन का
मन्त्र!
- हिन्दुस्तान स्वतंत्र हो कर भी सुखी जीवन का मन्त्र नहीं सीख पाया.अब धीरे धीरे आर्थिक परतंत्रता की ओर अग्रसर हो रहा है.
कभी भी नही होना
जवाब देंहटाएंपरतन्त्र!
यही है सुखी जीवन का
मन्त्र!...
इस माध्यम से आपने जीवन मंत्र दे दिया ..... सुदार रचना है शास्त्री जी .......
पिंजरा, कहीं तोते को मनुष्य की नकल की सजा तो नहीं.
जवाब देंहटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा गुरुवार (20-05-2021 ) को 'लड़ते-लड़ते कभी न थकेगी दुनिया' (चर्चा अंक 4071) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है।
चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।
यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
#रवीन्द्र_सिंह_यादव
अप्रतिम। यह मंत्र सबको अपनाना चाहिए।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएं'कभी भी नही होना परतन्त्र
जवाब देंहटाएंयही है सुखी जीवन का मंत्र'
आपके अनुभव से मिला यह मंत्र जीवन में आत्म सैट करना चाहिये। बहुत सुन्दर रचना।
बहुत सुंदर अग्रज
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर अग्रज
जवाब देंहटाएंसादर