बढ़ती तानाशाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
गद्दारी के मानदण्ड सब,
मक्कारों ने तोड़ दिये।
भोली-भाली जनता के,
सख़्ती से कान मरोड़ दिये।
गन्ध दासता की आती है,
सरकारी मनचाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
भामाशाह वतन में कितने,
नेक-नीति व्यापारी हैं।
बुला रहे फिर क्यों विदेश से,
ऐसी क्या लाचारी है?
डर लगता है फिरंगियों की,
बढ़ती आवाजाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
मौन हुए सब देख रहे हैं,
चढ़ते हुए समन्दर को।
कौन कलन्दर नचा रहा है,
अंगुलियों पर बन्दर को।
किसने भरी तिजोरी अपनी,
भ्रष्टाचरण उगाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
ऊधमसिंह-आज़ाद, भगतसिंह,
फिर से रण में उतरेंगे।
जन-जन के बाँकुरे सिपाही,
दुष्टों के पर कतरेंगे।
वही बचायेंगे भारत को,
उमड़ी हुई तबाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
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गुरुवार, 11 अक्टूबर 2012
"लिखो रक्त की स्याही से..." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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सुन्दर चित्रांकन,बहुत सराहनीय प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर बात कही है इन पंक्तियों में. दिल को छू गयी. आभार !
BAHUT SUNDAR KAVITA
जवाब देंहटाएंजोश भर देने वाली उम्दा रचना।
जवाब देंहटाएंआज का ज़माना इन्ही शब्दों को लिखने की प्रेरणा देता है ..
जवाब देंहटाएंसशक्त ..
बहुत ही ओजपूर्ण और प्रेरक प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंसमय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर भी आईएगा,शास्त्री जी.
बहुत बढ़िया...जानदार प्रस्तुति....
जवाब देंहटाएंये सबसे सुन्दर..
मौन हुए सब देख रहे हैं,
चढ़ते हुए समन्दर को।
कौन कलन्दर नचा रहा है,
अंगुलियों पर बन्दर को।
किसने भरी तिजोरी अपनी,
भ्रष्टाचरण उगाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।...
वाह..
सादर
अनु
सही वक़्त है,इसी तरह के 'क्रान्ति-पन्थ'दिकालाने का !
जवाब देंहटाएंनहीं वक़्त है,फिसलन वाले,मन्त्र वर्थ सिखलाने का ||
सच है,अगर लेखनी होगी,'सच की स्याही'में डूबी-
तब आएगा,समय बाग़ में महके फूल खिलाने का ||
वाह! बहुत सार्थक अभिव्यक्ति..
जवाब देंहटाएंक्यों लगाया है उम्मीदे मुसाफिर उनसे
जवाब देंहटाएंजो खुद नाउम्मीदगी का दामन थाम बैठे है
निकला है उन्हें तु जगाने
जो सोने का बहाना कर लेटे है
अत्यन्त प्रभावी कविता..
जवाब देंहटाएंआज ऐसे हुंकारी की जरूरत है, वर्ना आने वाले समय में हम और बदतर स्थिति में होंगे हमें सही व्यक्ति को चुनना होगा
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति प्रेरक रचना,,,,,,
जवाब देंहटाएंMY RECENT POST: माँ,,,
अच्छा चित्रण किया है अभी की परिस्थितियों का | ओजपूर्ण और प्रभावी रचना |
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंइस ओज पूर्ण गीत में खुला आवाहन है भारत की जनता का जागो ,गद्दार देश बेच रहें हैं .
जवाब देंहटाएंएक शैर इस गीत और गीतकार के नाम -
तेरी सौदागरी ने देश का भूगोल तक बेचा ,
खुदा के वास्ते बसकर ,बचा इतिहास रहने दे .
बधाई शास्त्री जी इस जोश बढाने वाले गीत के लिए .
SORT
जवाब देंहटाएंVirendra Sharma
बृहस्पतिवार, 11 अक्तूबर 2012
"लिखो रक्त की स्याही से..." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
त्रस्त हुआ है लोकतन्त्र अब.
बढ़ती तानाशाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
गद्दारी के मानदण्ड सब,
मक्कारों ने तोड़ किये।
भोली-भाली जनता के,
सख़्ती से कान मरोड़ दिये।
गन्ध दासता की आती है,
सरकारी मनचाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
भामाशाह वतन में कितने,
नेक-नीति व्यापारी हैं।
बुला रहे फिर क्यों विदेश से,
ऐसी क्या लाचारी है?
डर लगता है फिरंगियों की,
बढ़ती आवाजाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
मौन हुए सब देख रहे हैं,
चढ़ते हुए समन्दर को।
कौन कलन्दर नचा रहा है,
अंगुलियों पर बन्दर को।
किसने भरी तिजोरी अपनी,
भ्रष्टाचरण उगाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
ऊधमसिंह-आज़ाद, भगतसिंह,
फिर से रण में उतरेंगे।
जन-जन के बाँकुरे सिपाही,
दुष्टों के पर कतरेंगे।
वही बचायेंगे भारत को,
उमड़ी हुई तबाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
इस ओज पूर्ण गीत में खुला आवाहन है भारत की जनता का जागो ,गद्दार देश बेच रहें हैं .
एक शैर इस गीत और गीतकार के नाम -
तेरी सौदागरी ने देश का भूगोल तक बेचा ,
खुदा के वास्ते बसकर ,बचा इतिहास रहने दे .
बधाई शास्त्री जी इस जोश बढाने वाले गीत के लिए .
veerubhai1947.blogspot.com
बहुत ही ओजपूर्ण गीत....
जवाब देंहटाएंबहुत जबरदस्त!!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर अभिव्यक्ति....
गद्दारी के मानदण्ड सब,
जवाब देंहटाएंमक्कारों ने तोड़ किये।
भोली-भाली जनता के,
सख़्ती से कान मरोड़ दिये।
गन्ध दासता की आती है,
सरकारी मनचाही से।
खून सनी है क़ल़म सुख़नवर,
लिखो रक्त की स्याही से।।
एक हुंकार भरती ओजपूर्ण रचना मन को भा गयीं
देश के वर्तमान परिदृश्य को बदल् देने का अहवाह्न करती जोशीली कविता -बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएं